हिमाचल एवं स्पीति घाटी – १५ दिवसीय रोमांचक सड़क यात्रा

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भारत के इस हिमालयी राज्य की घाटियों की अद्भुत सुन्दरता को निहारने के लिए हिमाचल एवं स्पीति घाटी की एक लम्बी सड़क यात्रा से बेहतर उपाय अन्य नहीं हो सकता। धरती के सर्वाधिक जोखिम भरे मार्गों के अतिरिक्त, यहाँ तक पहुँचने के लिए परिवहन का कोई अन्य साधन भी नहीं है। आपको संकरी, ऊबड़-खाबड़ व बलखाती सडकों से होकर ही जाना पड़ता है जिन्हें कहीं दृढ़ तो कहीं भुरभुरे पर्वतों को काटकर बनाया गया है। कहीं आप सतलुज जैसी शक्तिशाली नदी के साथ साथ चलते हैं तो कहीं आपको स्पीति जैसी कोमल नदी का साथ प्राप्त होता रहता है। हिमाचल एवं स्पीति घाटी की इस सड़क यात्रा में तो कभी कभी कई किलोमीटर दूर तक आप के अतिरिक्त आपको कोई अन्य जीव भी दृष्टिगोचर नहीं होगा।

हिमाचल की १५ दिवसीय सड़क यात्रा

हिमाचल स्पिति घाटी सड़क यात्रा
हिमाचल स्पिति घाटी सड़क यात्रा

हिमाचल की सड़क यात्रा के विषय में अधिकतर यात्रा विवरण रोमांच से परिपूर्ण होते हैं किन्तु हमारी यात्रा अपेक्षाकृत सुगम थी। जुलाई मास होने के कारण हम भू-स्खलन की कुछ घटनाओं के लिए मानसिक रूप से तैयार थे। भू-स्खलन की परिस्थिति में, शान्ति से सड़क के किनारे गाड़ी खड़ी कर, मार्ग सुगम होने की प्रतीक्षा करने के लिए, हम दाना-पानी समेत पूर्ण रूप से सज्ज थे। सौभाग्य से यात्रा के देव हम पर प्रसन्न थे। उनकी कृपा से, सम्पूर्ण १७ दिवस, हमें मार्ग में किसी भी प्रकार के कष्ट अथवा   संकट का सामना नहीं करना पड़ा।

पहाड़ काट कर बनाई सड़कें
पहाड़ काट कर बनाई सड़कें

हिमाचल प्रदेश एक पहाड़ी प्रदेश होने के कारण इसके अधिकाँश क्षेत्रों में सड़क यात्रा एक धीमी गति की यात्रा होती है। ऊंचे पर्वतों की ढलानों पर बनी इसकी बल खाती संकरी सड़कें आपको बाध्य कर देती हैं कि आप पूर्णतः सचेत रहें। एक ओर गहरी खाई तथा दूसरी ओर ऊंचे पर्वतों के मध्य से जाती वक्रीय मार्गों को देख आप कभी अचंभित हो जायेंगे तो कभी उनकी प्रशंसा करेंगे, कभी रोमांचित होंगे तो कभी उनसे भयभीत होंगे। निरंतर परिवर्तित होते अप्रतिम परिदृश्य आपको भावविभोर कर देंगे। एक ओर किन्नौर जैसे, सेबों एवं अन्य हिमाचली फलों से लदे वृक्षों से भरा हराभरा क्षेत्र है तो दूसरी ओर सांगला घाटी के ऊबड़-खाबड़ पहाड़ तथा स्पीति के वीरान बीहड़ पर्वत। धर्म की चर्चा करें तो जैसे जैसे हम पर्वतों पर ऊंचे चढ़ते जाते हैं, आस्था भी हिन्दू धर्म से बौद्ध धर्म की ओर झुकती चली जाती है। घाटियों की हरीभरी हरियाली भी पर्वतों पर ऊंचे चढ़ते चढ़ते वीरान बीहड़ पर्वतों पर लटकते रंगबिरंगे बौद्ध पताकाओं में परिवर्तित होने लगते हैं। हिमाचल सड़क यात्रा में जल एक ऐसा तत्व है जो सदा आपके साथ रहता है, वह चाहे नदी हो अथवा झील। जल की प्रत्येक अभिव्यक्ति यहाँ अत्यंत पावन मानी जाती है।

स्पीति घाटी की सड़क यात्रा

हमने हिमाचल एवं स्पीति घाटी की १५ दिवसों की सड़क यात्रा की थी। यहाँ मैं आपको हमारे दिन-प्रतिदिन के अप्रतिम यात्रा अनुभवों एवं नियोजनों के विषय में बताने जा रही हूँ। प्रत्येक स्थान पर दर्शन किये गए विभिन्न दर्शनीय स्थलों के विषय में मैं पृथक पृथक संस्करण भी विस्तृत रूप से प्रकाशित करूंगी।

दिवस १- शिमला

भारतीय अद्यतन शिक्षा संस्थान शिमलाहमारी हिमाचल एवं स्पीति घाटी सड़क यात्रा का आरम्भ हमने शिमला से किया। मैं एवं मेरी सहयात्री अलका ने दिल्ली से हिमाचल प्रदेश परिवहन विकास निगम की बस की रात्रि सेवा ली। अलका से यह मेरी प्रथम भेंट थी। शिमला पहुंचकर हमारी भेंट हमारे गाड़ी चालक रवि से हुई जो हमारे हिमाचल व स्पीति घाटी सड़क यात्रा में हमारा सर्वाधिक मूल्यवान साथी होने जा रहा था। यहाँ मैं यह कहना चाहूंगी कि एक कुशल गाड़ी चालक का साथ होना स्वयं में एक वरदान के समान है। हमने सोच-समझकर, शिमला से गाड़ी भाड़े पर ली क्योंकि पहाड़ों के गाड़ी चालकों को पर्वतीय मार्गों पर कुशलता के गाड़ी चलाने का अनुभव होता है। साथ ही, स्थानीय टैक्सी चालक संघ से सामंजस्य भी रहता है।

शिमला में हमने भूतपूर्व वाइसरीगल लॉज (Viceregal Lodge) अर्थात राष्ट्रपति निवास का अवलोकन किया जो कभी ब्रिटिश वाइसराय का सरकारी ग्रीष्मकालीन आवास हुआ करता था। इसी निवास से ब्रिटिश वाइसराय द्वारा अनेक दशकों तक भारत पर शासन किया गया था। हमने इस वाइसरीगल लॉज के मार्गदर्शित पर्यटन का भरपूर आनंद उठाया तथा भवन के सुन्दर बगीचे में सैर भी की। हमने प्रा. चन्द्रमोहन परशीरा से भेंट की जिन्होंने हमें इस यात्रा में संभव अनेक अपारंपरिक दर्शनीय स्थलों के विषय में अवगत कराया। उनका मार्गदर्शन अत्यंत मूल्यवान सिद्ध हुआ।

दिवस २ – थानेदार

हाटू माता मंदिर
हाटू माता मंदिर

शिमला से थानेदार लगभग ७० किलोमीटर दूर स्थित है। सेबों के बागों से होते हुए, अप्रतिम प्राकृतिक सौंदर्य का आनंद उठाते हुए हम थानेदार पहुंचे। यहाँ हमने हिमाचली सेबों के विषय में जाना। बागों में सेबों को पकने में एवं भक्षण योग्य होने में किंचित समय शेष था। हमारा आगामी रात्रि का पड़ाव थानेदार में ही था।

थानेदार से हमने हाटु चोटी एवं नरकंडा की एक-दिवसीय यात्रा की। इस एक-दिवसीय यात्रा की मेरी सर्वोत्तम स्मृतियाँ हैं, प्रातः एवं संध्या के समय की गयी पैदल सैर, स्थानीय महिलाओं से भेंट, वृक्षों से गिरे फलों को चुनना, नदी किनारे बैठकर उसके कलरव का आनंद उठाना एवं लोक कथाएं सुनना। यहाँ हमने अपने आगामी यात्रा के विषय में जानकारी भी एकत्र की।

दिवस ३ – रामपुर बुशहर एवं सराहन

रामपुर बुशहर का पद्म महल
रामपुर बुशहर का पद्म महल

थानेदार से सांगला केवल १५० किलोमीटर दूर स्थित होते हुए भी समयानुसार यह एक लम्बी यात्रा थी। हमने प्रातः शीघ्र ही यात्रा आरम्भ की तथा सीधे रामपुर बुशहर में रुके। वहां हमें पदम महल अत्यंत भा गया। उग्र सतलज नदी के तट पर हमने एक नरसिम्हा मंदिर भी ढूँढा।

वहां से एक लघु उपमार्ग लेते हुए हम भीमाकाली मंदिर के दर्शन हेतु सराहन गए। शिला एवं काष्ठ का प्रयोग कर बनाया गया भीमाकाली का मंदिर अत्यंत सुन्दर है।

सड़क के किनारे एक ढाबे में खाए राजमा-चावल मुझे अब भी स्मरण है। साथ ही यहाँ के लोगों द्वारा उनके घर में ठहराने की व्यवस्था करने की तत्परता एवं उनके निमंत्रण की स्मृति अब भी हृदय में मिठास उत्पन्न कर देती है।

सांगला में बासपा नदी के तट पर बने बंजारा कैंप में हमारा रात्रि का पड़ाव था। वहां पहुंचते पहुंचते अन्धकार हो चुका था। रात्र भर हमें बासपा नदी की गर्जना सुनाई देती रही। उसे प्रत्यक्ष देखने की अभिलाषा तीव्र हो रही थी। प्रातः की प्रथम किरण के साथ मैं भी उठी तथा पूर्ण वेग से बहती बासपा नदी के दर्शन किये।

दिवस ४ – सांगला

हमने सम्पूर्ण दिवस चिटकुल, रक्छाम, सांगला एवं बस्तेरी गाँवों के दर्शन करते हुए व्यतीत किया। चितकुल से सांगला घाटी का अप्रतिम दृश्य दृष्टिगोचर होता है। बस्तेरी में हमने बद्री नारायण को समर्पित एक काष्ठ मंदिर का निर्माण कार्य भी देखा।

बासपा नदी के तट पर व्यतीत किये दो रात्रों के अनुभव मेरे हृदय में सदा के लिए बस गए हैं।

दिवस ५ – रिकांग पिओ एवं कल्पा

सांगला से ४० किलोमीटर दूर स्थित कल्पा तक की यात्रा अधिक लम्बी नहीं थी। सांगला घाटी से २ किलोमीटर दूर, मार्ग में रूककर हमने कमरू दुर्ग तक की छोटी सी चढ़ाई भी की। सांगला घाटी में, कमरू गाँव में स्थित, लकड़ी का यह एक प्राचीन दुर्ग है। इस दुर्ग में कामाख्या देवी का मंदिर है।

किन्नर कैलाश पर्वत
किन्नर कैलाश पर्वत

सड़क के एक ओर, पूर्ण वेग से बहती सतलुज नदी मुझे अब भी स्मरण है। हमने रिकांग पिओ गाँव का अवलोकन करते कुछ समय व्यतीत किया। यहाँ अधिकाँश लोगों ने सर पर ठेठ हरी टोपी पहनी हुई थी। इसके कारण चारों ओर हरी छटा बिखरी हुई थी। उस दिन सूर्य देवता अपनी पूरी आभा से दमक थे। बाजार विभिन्न क्रियाकलापों में पूर्णतः व्यस्त था। हमने भी बाजार में चिलगोजे खोजे किन्तु वह चिल्गोजों का मौसम नहीं था।

वहां से हम आगे कल्पा पहुंचे। किन्नर कैलाश पर्वत श्रंखला के समक्ष ही हमारा पड़ाव था। क्षितिज में मेघ पर्वत की चोटी से आँख-मिचौली का खेल खेल रहे थे। उनके इस खेल के मध्य हम पर्वत की चोटियों को पहचानने की चेष्टा कर रहे थे। उस दिन अलका का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। इसलिए मैं अकेले ही कल्पा की बस्तियों में सैर करने तथा लकड़ी के घर व मंदिरों निहारने चली गयी। वहां से चारों ओर का परिदृश्य अप्रतिम था। सीधी चढ़ाई की पहाड़ियों के ऊपर बसे छोटे छोटे गाँव अत्यंत मनमोहक प्रतीत होते हैं।

दिवस ६ – नाको

कल्पा से नाको लगभग १०० किलोमीटर दूर स्थित है। यात्रा के इस भाग में मैंने सर्वप्रथम शीत मरुभूमि की प्रथम झलक पायी। जब हम नाको पहुँच रहे थे, हमारी दृष्टि बंजर पहाड़ों के समूह पर पड़ी। बालू के विशाल टीलों के समान प्रतीत होते उन पहाड़ों ने हमें सम्मोहित सा कर दिया था। उन्हें देख ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो उंगली के कोमल स्पर्श से भी वे सभी भुरभुरा कर गिर पड़ेंगे। आकाश इतना स्वच्छ, निर्मल व नीला था जो इससे पूर्व मैंने कभी नहीं देखा था।

नाको गाँव - स्पीती घाटी
नाको गाँव – स्पीती घाटी

नाको में मैंने ग्रामीण स्तर का सर्वोत्तम पर्यटन प्रबंधन संगठन, नाको यूथ क्लब को ढूंढा। उनका कार्य अत्यंत प्रेरणादायी था। नाको यूथ क्लब के उत्साही नवयुवकों ने मात्र ५० रुपयों के अल्प शुल्क पर हमें नाको का दर्शन कराया। उनकी सहायता से हमने गाँव में तथा पावन झील के किनारे पैदल सैर की। एक प्राचीन बौद्ध मठ में भित्तिचित्रों का अवलोकन किया। क्लब के सदस्य गाँव को स्वच्छ रखने में सहायता करते हैं। उन्होंने विभिन्न स्थानों पर सौर उर्जा की पट्टिकाएं लगाई हैं तथा गाँव की सुन्दरता की ओर भी उन्होंने विशेष ध्यान दिया है। उस समय से आज तक यह गाँव मेरे लिए एक आदर्श गाँव रहा है।

अगले दिवस, ताबो की ओर यात्रा करते हुए, मार्ग में हम गिउ गाँव जहां एक लामा का, बैठी अवस्थिति में परिरक्षित शव रखा हुआ है।

दिवस ७ – ताबो मठ स्पीति घाटी

ताबो तक की हमारी ६० किलोमीटर की यात्रा अत्यंत मनमोहक परिदृश्यों से परिपूर्ण थी। स्पीति नदी के तट पर बसा ताबो एक छोटा सा गाँव है जो मिट्टी से निर्मित प्राचीन बौद्ध मठ के लिए प्रसिद्ध है। हम इस मठ के दर्शन करने के पश्चात आगामी पड़ाव काजा निकल जाना चाहते थे किन्तु ताबो की सुन्दरता ने हमें रोक लिया। हमने वहीं ताबो में ही रात्र व्यतीत की।

ताबो मठ
ताबो मठ

मठ में एक लामा ने हमें अप्रतिम भित्तिचित्रों के दर्शन कराये। हमने वहां प्राचीन गुफाएं भी देखीं। वहां स्थित प्राचीन शैलचित्र हमारे लिए आश्चर्यजनक खोज थे।

दिवस ८ – धनकर, स्पीति घाटी

धनकर मठ से दिखती पिन नदी
धनकर मठ से दिखती पिन नदी

लगभग ५० किलोमीटर की सड़क यात्रा कर हम काज़ा पहुंचे। मेरे लिए काज़ा दर्शन इस यात्रा के आनंद की चरमसीमा होने वाली थी। एक छोटा सा उपमार्ग लेते हुए हम धनकर पहुंचे जहां हमने अत्यंत भंगुर धनकर मठ देखा। इस मठ में एक समय में अधिक लोगों को प्रवेश करने की अनुमति नहीं होती क्योंकि किसी भी समय इसके भुरभुरा कर ढहने की आशंका रहती है। सीधी चट्टान के किनारे, ऊँचाई पर बने इन मठों में भिक्षुक कैसे रहते थे, यह तथ्य हमारी सोच से भी परे है। धनकर की मेरी सर्वोत्तम स्मृति है, मठ के झरोखे से नीचे बहती पिन नदी का अप्रतिम दृश्य। धनकर मठ की ओर आती वीरान, संकरी, नुकीले मोड़ युक्त सड़कें ऐसे प्रतीत हो रही थीं मानो उन्हें केवल हमारे लिए ही बिछाया गया हो।

दिवस ९, १० – काज़ा, स्पीति घाटी

लांग्ज़ा गाँव
लांग्ज़ा गाँव

हमारी हिमाचल सड़क यात्रा में काज़ा एक प्रमुख पड़ाव था। इस क्षेत्र का सर्वाधिक विशाल नगर काज़ा , पर्यावरणीय पर्यटन एवं विश्व के सर्वोच्च खुदरा पट्रोल पम्प के लिए जाना जाता है। यहाँ हम २ से ३ दिवस व्यतीत करने वाले थे जिसमें हम काजा के आसपास अनेक छोटे गाँवों को देखना चाहते थे। हमने अनेक बौद्ध मठ देखे जिनमें की मठ भी एक है, जहां से घाटी का अप्रतिम दृश्य दृष्टिगोचर होता है। हमने लान्ग्जा व रंग्रिक जैसे गाँवों का अवलोकन किया। हम कोमिक एवं हिक्किम गाँवों तक नहीं जा पाए क्योंकि अकस्मात् ही वर्षा होने लगी जो इस क्षेत्र में अत्यंत असामान्य है। पहाड़ों में वर्षा होने पर सड़कें अत्यंत संकटमय हो जाती हैं। प्रसन्नता यह हुई कि इस क्षेत्र में क्वचित होती वर्षा का भी हम आनंद उठा पाए।

काज़ा की मेरी अमिट स्मृति है, किंचित हरियाली की छटा लिये इसके वीरान विस्तृत परिदृश्य।

दिवस १० – कुंजुम दर्रा अथवा कुंजुम ला

हिमाच्छादित चोटियाँ और कोमल फूल - कुंजुम दर्रा
हिमाच्छादित चोटियाँ और कोमल फूल – कुंजुम दर्रा

कुंजुम दर्रा ही वह कारण है जिसके लिए हमने जुलाई में यह यात्रा करने का नियोजन किया। यह दर्रा अत्यंत कम समयावधि के लिए ही खुलता है। यह दर्रा कुल्लू घाटी और लाहौल स्पीति घाटी को जोड़ता है। जब हम उस दर्रे पर, कुंजुम के मील के पत्थर के समीप खड़े थे तथा अपने संग ले जाने का तीव्रता से प्रयास करती वायु से जूझ रहे थे, हमारे मुख पर सफलता की चमक थी। कुंजुम के रंगबिरंगे परिदृश्य, हरेभरे मैदानों में भेड़ों को चराते चरवाहे, इत्यादि दृश्य मेरी स्मृति में अनंतकाल के लिए बस गए हैं।

आप कुंजुम दर्रे पर अधिक समय व्यतीत नहीं कर सकते। हम चंद्रताल झील की ओर जाते समय यहाँ कुछ क्षण ही रुके थे।

दिवस ११ – चंद्रताल सरोवर

नीलाम्बरा चंद्रताल सरोवर
नीलाम्बरा चंद्रताल सरोवर

स्पीति घाटी यात्रा में चंद्रताल मेरे लिए सर्वाधिक रोमांचकारी स्थान था। हम चंद्रताल तम्बू में लगभग दोपहर के भोजन के समय पहुंचे थे। पहुंचते ही हम चंद्रताल की ओर निकल पड़े। यहाँ पहुँचने से पूर्व हम यह चर्चा कर रहे थे कि १५००० फीट से भी अधिक ऊँचाई पर स्थित इस चंद्रताल झील की ५ किलोमीटर लम्बी परिक्रमा करना हमारे लिए कठिन होगा। किन्तु जैसे ही हम यहाँ पहुंचे, हमने चंद्रताल की परिक्रमा करने का निश्चय किया। यह परिक्रमा हमने, बिना किसी कष्ट के, इतनी सहजता से पूर्ण की कि आज भी हमारे लिए यह किसी जादुई घटना से कम नहीं है।

चंद्रताल सरोवर के समीप हम तंबू में रुके थे। चारों ओर बर्फ से आच्छादित पर्वत श्रंखलायें, गिर पड़ने को तत्पर तारों से भरा आकाश, इनके मध्य हमारा तम्बुओं में रहना, अत्यंत स्वप्निल एवं अवास्तविक था।

दिवस १२ – रोहतांग दर्रा

पिघलता हुआ हिमनद
पिघलता हुआ हिमनद

चंद्रताल से मनाली तक की सड़क यात्रा लम्बी तथा कठिनाई भरी थी। हमें अनेक छोटी-बड़ी नदियों को पार करना पड़ा जो बड़ी बड़ी चट्टानों से भरी हुई थीं। हमारी गाड़ी एक स्थान पर अटक भी गयी थी। सड़क से जाते अन्य गाड़ी चालकों की सहायता से उसे बाहर निकला गया। मनाली पहुंचते पहुंचते चारों ओर के परिदृश्य पुनः हरेभरे होने लगे जिन्होंने हमें मनोवांछित दिलासा प्रदान की। गत कुछ दिवसों में जिन वीरान बीहड़ पर्वतीय परिदृश्यों में हमें एक अद्भुत शान्ति का अनुभव हो रहा था, उसके ठीक विपरीत इस हरियाली भरे दृश्यों ने हमें पुनः जीवित होने का आभास प्रदान किया।

रोहतांग में सिका हुआ भुट्टा खाते समय हमें आभास हुआ कि हम पुनः सभ्यता में वापिस आ गए हैं। हमने निश्चय किया कि अंततः अपनी दैनन्दिनी जीवन में आने से पूर्व मनाली में मनचाहा भोजन करेंगे, आसपास आसान सैर करेंगे तथा थकान मिटाने के लिए अपने अंग शिथिल करेंगे। एक स्वप्निल यात्रा को सफलता पूर्वक पूर्ण करने के उपलक्ष्य में उत्सव मनाना पूर्णतः न्यायोचित भी है।

दिवस १३ – नग्गर

काष्ठ का बना नग्गर दुर्ग
काष्ठ का बना नग्गर दुर्ग

हमने नग्गर में एक पूर्ण दिवस व्यतीत किया जिसमें हमने कुल्लू राजाओं की काष्ठ वास्तुशैली, उनकी स्मारक शिलाओं, कला दीर्घाओं तथा हिमाचल की अन्य विरासतों के विषय में जाना। साथ ही अनेक सुन्दर मंदिरों के दर्शन भी किये।

दिवस १४ – मनाली

हमने मनाली की सड़कों पर पैदल सैर की। हिडिम्बा देवी एवं वशिष्ठ के मंदिरों के दर्शन किये। माल रोड में सैर करते अन्य पर्यटकों में घुलमिलकर चहल-पहल का आनंद उठाया। शान्ति से बैठकर कॉफ़ी का सेवन किया। संध्या के समय जल से परिपूर्ण ब्यास नदी के किनारे बैठकर प्रकृति का आनंद उठाया।

वापिस आते समय हमने एक सपेरे को बीन पर एक सुन्दर तान बजाते देखा। एक लम्बे अंतराल के पश्चात मैंने बीन पर एक सुमधुर संगीत सुना।

दिवस १५ – मणिकरण

मणिकरण के गरम झरने
मणिकरण के गरम झरने

मणिकरण में हमने उष्ण जल के स्त्रोत देखे जो आश्चर्यजनक रूप से बर्फीले जल से भरी पार्वती नदी से सटे हुए थे। यह स्थान प्रसिद्ध मणिकरण साहिब गुरुद्वारा के समीप है।

कुल्लू पहुंचते ही हमने हमारे गाड़ी चालक रवि से विदा ली तथा दिल्ली आने के लिए बस में सवार हो गए।

इस संस्करण में नीले रंग में दर्शाए गए सक्रिय वेबलिंक पर क्लिक करने पर आप हमारी यात्रा के उस भाग के विषय में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।

हिमाचल एवं स्पीति घाटी की हमारी १५ दिवसीय सड़क यात्रा को तीन वर्ष बीत चुके हैं किन्तु उसकी मधुर स्मृतियाँ हृदय में अब भी नूतन हैं। यह घाटी भारत का सर्वाधिक सुन्दर भाग है।

स्पीति घाटी सड़क यात्रा नियोजित करने से पूर्व आवश्यक सूचनाएं:

स्पीती घाटी के नग्न वीरान पहाड़
स्पीती घाटी के नग्न वीरान पहाड़
  • हमने स्पीति घाटी सड़क यात्रा जुलाई मास के प्रथम अर्द्धांश में नियोजित की थी क्योंकि हम कुंजुम एवं रोहतांग दर्रा, दोनों स्थानों पर जाना चाहते थे। स्पीति एक ग्रीष्मकालीन पर्यटन स्थल है। शीत ऋतु में यह स्थान सामान्य जनजीवन से लगभग कट जाता है।
  • हिमाचल एवं विशेषतः स्पीति घाटी ऊँचाई पर स्थित है तथा वहां जाने के मार्ग संकरे, उबड़-खाबड़ एवं जोखिम भरे होते हैं। धीमी गति से जाएँ ताकि सुरक्षित रहते हुए आप अपनी देह को ऊँचाई के वातावरण से अभ्यस्त होने के लिए भरपूर समय दे सकें।
  • शिमला अथवा मनाली से स्थानीय टैक्सी की सेवायें ही लें क्योंकि पहाड़ों के गाड़ी चालकों को वहां के मार्गों की पूर्ण जानकारी होती है, वे पहाड़ों के जोखिमभरे मार्गों पर गाड़ी चलने में अभ्यस्त होते हैं तथा उनकी अन्य चालकों से घनिष्टता होती है जो अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि मार्ग में आपकी गाड़ी कहीं अटक गयी अथवा मार्ग में अन्य कोई बाधा आ गयी तो संकट के समय शीघ्र सहायता प्राप्त करने में आसानी हो सकती है।
  • सभी मार्गों पर हिमाचल प्रदेश परिवहन विकास निगम की बसें चलती हैं किन्तु वे अत्यंत अल्प संख्या में हैं।

शाकाहारी भोजन

  • अलका व मैं, हम दोनों ही शाकाहारी हैं। इसलिए हमने काज़ा पहुँचने तक, प्रतिदिन शब्दशः राजमा-चावल अथवा दाल-चावल ही खाया। काजा में हमने शाकाहारी थुपका का आनंद उठाया। इस क्षेत्र में अत्यंत साधारण किन्तु ताजा भोजन प्राप्त हो जाता है। लम्बी दूरी की यात्रा में स्वतः के भरण-पोषण के लिए हमने साथ में सूखे मेवे रखे थे। जहां भी स्थानीय फल उपलब्ध होते थे, हम उन्हें खरीद लेते थे।
  • ट्रैकिंग के लिए स्पीति एकोस्फीयर जैसे स्थानिक क्लबों एवं संस्थाओं की सेवायें लें। वे अपने कार्य में निपुण तो होते ही हैं, साथ ही आपके द्वारा उनके स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्र की सहायता भी हो जायेगी। वे पारिस्थितिकी संबंधिक अनेक महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं।
  • हमारी गाड़ी प्रतिदिन औसतन ५० किलोमीटर की दूरी तय कर रही थी। इसका अर्थ है कि आपको संलग्न ३ से ४ घंटे गाड़ी में व्यतीत करने पड़ेंगे। इस क्षेत्र में धीमी गति अत्यावश्यक है।

औषधियां

कितने शक्तिशाली या कितने कोमल हैं यह स्पीति घाटी के पहाड़?
कितने शक्तिशाली या कितने कोमल हैं यह स्पीति घाटी के पहाड़?
  • आप आवश्यकता के अनुसार सभी संभव औषधियां साथ रखें। आप भले ही स्वस्थ एवं हृष्ट-पुष्ठ हों, अपने साथ सर्व सामान्य औषधियां अवश्य रखे क्योंकि सम्पूर्ण मार्ग में आपको विभिन्न तापमानों, वातावरणों एवं ऊँचाई सम्बंधित कष्टों का सामना करना पड़ेगा।
  • शीत जलवायु से स्वयं की रक्षा हेतु अपने साथ आवश्यक ऊनी वस्त्र एवं जैकेट रखें। अन्यथा भी आप स्वयं को पूर्णतः ढँक कर रखे क्योंकि स्वच्छ निर्मल वातावरण में सूर्य की किरणें कष्टकर होती हैं।
  • मार्ग के अधिकतर भाग में भारत संचार निगम के सिम कार्ड ही कार्य करते हैं। अन्य फोन केवल कैमरे का ही कार्य कर सकते हैं!!!
  • ATM की सुविधाएं केवल सीमित स्थानों पर ही उपलब्ध हैं, जिनमें नकद भी सीमित होता है। अतः अपने साथ पर्याप्त नकद रखें। पेट्रोल पम्प की सुविधाएं भी सीमित स्थानों पर ही उपलब्ध हैं। हमें केवल रिकांग पिओ एवं काजा में ही पेट्रोल उपलब्ध हुआ। तत्पश्चात मनाली में हमने पेट्रोल भरवाया।

बंजारा कैंप

इस मार्ग के अधिकतर स्थानों पर बंजारा कैंप में ठहरने की सुविधाएं प्राप्त हो जाती हैं। अधिकांशतः, इस क्षेत्र में ठहरने के लिए इससे उत्तम सुविधाएं उपलब्ध भी नहीं हैं। इनके अतिरिक्त सम्पूर्ण हिमाचल में अनेक होमस्टे भी उपलब्ध हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

3 COMMENTS

  1. This is a live commentary and one can visualise the places and feel n smell the air.

    Have been to Simla and Chail.

    Hope some good day will see the interiors.

    Thanks for the great read.

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