भारत एक प्राचीन भूमि है। भारत में अनेक ऐसे स्थान हैं जो प्रोटो-ऐतिहासिक काल अर्थात् प्रागैतिहासिक काल एवं इतिहास काल के मध्य से अब तक अनवरत अखंड रूप से बसे हुए हैं। हम सब अयोध्या एवं काशी जैसे प्राचीन, ऐतिहासिक एवं पवित्र स्थलों के विषय में जानते ही हैं जो सनातन काल से बसे हुए हैं। किन्तु इनके अतिरिक्त भी भारत देश में ऐसे अनेक स्थान हैं। उत्कृष्ट उदहारण है, ओडिशा की प्राचीन नगरी जाजपुर।
आज जाजपुर ओडिशा का एक जिला है। एक ओर जाजपुर आदि शक्ति बिरजा माता शक्तिपीठ की गद्दी के लिए प्रसिद्ध है, वहीं दूसरी ओर इस धरती में लोहखनिज का समृद्ध भण्डार होने के कारण यह एक महत्वपूर्ण इस्पात केंद्र है। यदि आप आरम्भ से इस क्षेत्र का इतिहास पढ़ेंगे तो आप पायेंगे कि भिन्न भिन्न कालखंडों में इस क्षेत्र को अनेक नामों द्वारा अलंकृत किया गया है। प्रत्येक नाम उस कालखंड में इस क्षेत्र के सार को दर्शाता है।
आप उन नामों एवं उनकी महत्ता के विषय में जानना चाहते हैं? तो आईये मेरे साथ, हम संक्षिप्त में जाजपुर के इतिहास, उसके विभिन्न नाम एवं उनकी सारगर्भिता के विषय में चर्चा करते हैं।
जाजपुर का संक्षिप्त इतिहास
बैतरणी अथवा वैतरणी नदी जाजपुर की प्राचीनतम जीवंत अस्तित्व है। यह वही पौराणिक वैतरणी नदी है जिसे सत्कर्म रूपी पुण्य द्वारा पार कर सत्धर्मी स्वर्ग पहुँचते हैं। जाजपुर में अनंतकाल से बहती हुई यह शांत नदी इस प्राचीन भूमि को पोषित कर रही है। इसके तट पर अनेक प्राचीन व पवित्र मंदिर स्थित हैं। उनके सभी महत्वपूर्ण उत्सवों में नदी के तट पर अनेक जत्रायें एवं मेले लगाए जाते हैं।
सभी प्रकार के तर्पण अनुष्ठान में इस नदी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। इसीलिए इसे बैतरणी तीर्थ भी कहा जाता है।
आधुनिक काल में इसे जाजपुर जिले की लम्बी सीमा के रूप में देखा जाता है।
ब्राह्मणी नदी भी एक अन्य महत्वपूर्ण नदी है जो जाजपुर के मध्य से बहते हुए इसे पोषित करती जाती है।
पौराणिक काल
यज्ञ क्षेत्र, सती पीठ, बिरजा क्षेत्र, ये सभी पौराणिक नाम हमें उस कथा का स्मरण कराते हैं जिसके अनुसार यहाँ एक प्रसिद्ध यज्ञ किया गया था।
पौराणिक कथा के अनुसार ब्रह्मा ने यहाँ स्थित ब्रह्म कुण्ड में एक यज्ञ किया था। उस यज्ञ वेदी से बिरजा देवी प्रकट हुई थी। ब्रह्मा ने स्वयं उनकी मूर्ति यहाँ प्रतिष्ठापित की थी। चूँकि इस स्थान पर देवी यज्ञ से प्रकट हुई थी, इस क्षेत्र को यज्ञपुरा नाम दिया गया था जो इसका प्राचीनतम नाम है।
ऐसी मान्यता है कि इस स्थान पर गयासुर की नाभि स्थित है, इसलिए इसे नाभि गया भी कहते हैं। इसी कारण इसे बिहार में स्थित गया का समकक्ष माना जाता है। अतः ये दोनों स्थान पिंड दान अथवा तर्पण के लिए प्रसिद्ध हैं।
इस क्षेत्र में श्वेत वराह का एक मंदिर है। हिन्दू पंचांग के अनुसार यह वर्तमान कल्प का नाम भी है। यहाँ सप्तमातृका के रूप में शक्ति की भी आराधना की जाती है। उनका मंदिर बैतरणी नदी के तट पर स्थित है।
महाभारत
महाभारत के वन पर्व के अनुसार पांडवों ने अपने वनवास काल में इस क्षेत्र में भी विचरण किया था। ज्येष्ठ पांडव भ्राता, युधिष्ठिर ने यहाँ एक धर्म यज्ञ का आयोजन भी किया था।
दुर्योधन की पत्नी भानुमती कलिंग की राजकुमारी थी जिसकी राजधानी राजपुर को अब जाजपुर के नाम से जाना जाता है। उनके पिता शत्रुयुध ने कौरवों की ओर से महाभारत युद्ध में भाग लिया था।
गदा क्षेत्र
ओडिशा में चार पवित्र क्षेत्र हैं जिन्हें विष्णु के चार प्रतीक चिन्हों के नाम से जाना जाता है। पुरी को शंख क्षेत्र, कोणार्क को पद्म क्षेत्र, भुवनेश्वर को चक्र क्षेत्र तथा बिरजा के क्षेत्र जाजपुर को गदा क्षेत्र कहा जाता है।
प्रागैतिहासिक काल
जाजपुर में अनेक पुरातात्विक स्थल हैं जो प्रागैतिहासिक काल के विभिन्न युगों से संबंधित हैं। उदहारण के लिए, दर्पणगढ़, सुनामुखी तन्गेर, रानीबंदी, धानमहल तथा महागिरी तन्गेर में छः मुक्ताकाश पुरापाषाण स्थल हैं।
इन प्रागैतिहासिक स्थलों से खुरचनी, छेनी, पत्रक, चाकू के फल जैसी अनेक कृतियाँ प्राप्त हुई हैं।
चंडीखोल में एक लौहयुग के पुरातात्विक स्थल की खोज हुई है। यहाँ लोहा गलाने के विविध यंत्रों के अतिरिक्त मिट्टी के अनेक प्रकार के पात्र भी प्राप्त हुए हैं।
ऐतिहासिक काल
जाजपुर के इतिहास में अनेक कालावधियों में यह इस क्षेत्र की राजधानी रह चुकी है। विभिन्न कालावधियों में उसकी सीमाओं एवं उसके नामों में परिवर्तन होता रहा है, जैसे कलिंग, उत्कल, ओड्र, तोशाली, ओडिशा आदि। जाजपुर इन सभी की राजधानी रही है। इस क्षेत्र में अनेक राजे-महाराजे आये व चले गए किन्तु जाजपुर ने दीर्घ काल तक उनकी राजधानी होने का मान बनाए रखा।
कहा जाता है कि महाभारत युद्ध के पश्चात विभिन्न राजाओं की ३२ पीढ़ियों ने कलिंग पर राज किया। उसके पश्चात, लगभग ४थी सदी के आसपास मगध के नंदवंश ने इस पर अधिपत्य जमाया। मौर्य साम्राज्य के आरम्भ होते ही यह पुनः एक शक्तिशाली स्वतन्त्र राज्य बन गया।
मौर्य सम्राट अशोक का कलिंग युद्ध अनेक कारणों से जाना जाता है। जाजपुर में उनके शासनकाल में बौद्ध धर्म का आगमन हुआ जो एक दीर्घ काल तक इस क्षेत्र में फलता-फूलता रहा।
मौर्य साम्राज्य के पश्चात इस क्षेत्र पर चेदि राजाओं ने अपना अधिपत्य स्थापित किया। उन्होंने वर्तमान भुवनेश्वर के निकट स्थित शिशुपालगढ़ नामक स्थान को अपनी राजधानी घोषित की। जाजपुर उनके साम्राज्य का भाग नहीं बचा था क्योंकि प्रथम एवं द्वितीय सदी में उत्तर कलिंग पर शासन करते खारवेल ने जाजपुर को अपने साम्राज्य में सम्मिलित कर लिया था। इसके पश्चात, प्रथम सहस्त्राब्दी के आरंभिक सदियों में वह कुषाण साम्राज्य के अंतर्गत आ गया जिसने अपने जागीरदारों के माध्यम से इस क्षेत्र पर राज किया। ये जागीरदार इस क्षेत्र के १३ मुरुंड राजा थे।
गुप्त वंश ने भी इस क्षेत्र पर शासन किया था, इस विषय में ठोस जानकारी उपलब्ध नहीं है किन्तु उनकी संस्कृति का प्रभाव अवश्य दृष्टिगोचर होता है। जानकारों का ऐसा मानना है कि बिरजा माता की प्रतिमा का दिनांकन इसी कालखंड से संबंध रखता है। इस क्षेत्र से गुप्त वंश की स्वर्ण मुद्राएँ भी उत्खनित की गयी हैं। ऐसी मान्यता है कि गुप्त वंश ने रत्नागिरी एवं ललितगिरी में स्थित बौद्ध मठों की स्थापना के लिए वित्तीय भार भी वहन किया था।
छठी शताब्दी में पृथ्वी विग्रह ने इस क्षेत्र पर शासन किया, वहीं सातवीं शताब्दी के आरम्भ में इस क्षेत्र को हर्षवर्धन के शासन के अंतर्गत ले लिया गया। उस समय इस क्षेत्र को ओड्र विसया कहा जाता था जो कुछ अन्य नहीं, अपितु विरजा मंडल अथवा जाजपुर ही है।
७वीं सदी के प्रसिद्ध यात्री व्हेन त्सांग ने जाजपुर का भ्रमण किया था। उन्होंने अपने यात्रा संस्मरण में इसे जाजपुर ही कहा है। उनके यात्रा संस्मरण के अनुसार इस क्षेत्र के स्थानिक ऊँचे एवं श्यामवर्ण थे जिनकी अध्ययन में प्रगाढ़ रूचि थी। उन्होंने अपने संस्मरण में यहाँ १०० से अधिक बौद्ध मठों एवं ५० से अधिक हिन्दू मंदिरों की उपस्थिति का भी उल्लेख किया है।
८वीं सदी के मध्य में जाजपुर में भौमकार वंश अधिक शक्तिशाली राजवंश के रूप में उभरने लगा था। उन्होंने आधुनिक ओडिशा के अधिकांश भागों एवं उसके पार भी अनेक क्षेत्रों पर अपना अधिपत्य स्थापित किया था। इस राजवंश की विशेषता है कि २०० वर्षों से अधिक की कालावधि में इस क्षेत्र पर जिन १८ भौमकार शासकों का अधिपत्य रहा, उनमें ६ शासक स्त्रियाँ थी। उनमें से प्रथम महिला शासक का नाम त्रिभुवना महादेवी था। मुझे ज्ञात नहीं कि इसके अतिरिक्त किसी भी अन्य राजवंश में इतनी बड़ी संख्या में महिला शासक रही होंगी।
इस काल में जाजपुर को गुहादेव पताका अथवा गुहेश्वर पताका कहा जाता था तथा उस काल को भौम काल कहा जाता था। अनेक ताम्र अभिलेखों में इसके साक्ष्य प्राप्त हुए हैं। उस कालखंड में जाजपुर ने संस्कृति के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगती की थी। विविध कलाक्षेत्र, वास्तु एवं स्थापत्य शैली, साहित्य, भाषा एवं सामाजिक रूपरेखा आदि में उनका सराहनीय योगदान रहा।
ऐसी मान्यता है कि इसी काल में ओडिशा की उड़िया भाषा का उद्भव हुआ था।
जजाति केशरी तथा जाजपुर का स्वर्णिम काल
१०वीं सदी के मध्यकाल में भौमकार साम्राज्य दक्षिण कोशल के जजाति प्रथम के हाथों पराजित हो गया। कुछ काल अराजकता में व्यतीत होने के पश्चात सोमवंशी राजवंश के चंडीहर राजा का साम्राज्य अधिक शक्तिशाली हो गया। चंडीहर स्वयं को जजाति द्वितीय मानता था। कालांतर में उन्हें जजाति केशरी कहा गया। इतिहास जजाति केशरी को अनेक मंदिरों के निर्माणकर्ता के रूप में स्मरण करता है। उन्होंने विरजा मंदिर, वराह मंदिर एवं शुभस्तंभ जैसे अनेक प्रसिद्ध मंदिरों का निर्माण करवाया था।
उन्होंने अपनी राजधानी का नाम परिवर्तित कर अभिनव जजातिनगर कर दिया था। कालांतर में उनके पुत्र उद्योत केशरी ने भुवनेश्वर में लिंगराज मंदिर का निर्माण करवाया।
राजा जजाति अपने साम्राज्य का प्रभाव स्थापित करने के लिए यहाँ दशाश्वमेध यज्ञ करना चाहते थे। इसके लिए उन्होंने उत्तर भारत के कन्नौज से १०,००० ब्राह्मणों को यहाँ आमंत्रित किया। उन्हें अपने राज्य में स्थाई रूप से बसाने के लिए भूमि अनुदान प्रदान किये जिसे संसना कहा जाता है। आज भी इस क्षेत्र के पुरोहित अपने मूल स्थान का संबंध इसी स्थानांतरगमन से जोड़ते हैं।
आज बैतरणी नदी के तट पर स्थित दशाश्वमेध घाट जजाति केशरी द्वारा किये गए इसी महान यज्ञ का स्मरण कराता है।
१२वीं सदी के आरंभ में पूर्वी गंग वंश ने जाजपुर को अपने अधिपत्य में ले लिया। किन्तु तब भी जाजपुर लगभग सम्पूर्ण सदी के लिए उनकी राजधानी बना रहा। तत्पश्चात उन्होंने कटक को अपनी राजधानी घोषित की तथा अफगान आक्रमणकारियों से निपटने के लिए सांस्कृतिक व राजनैतिक राजधानी जाजपुर को परिवर्तित कर सेना की छावनी बना दी।
१६वीं सदी में काला पहाड़ ने इस क्षेत्र पर आक्रमण कर इसका घोर विनाश किया। उसने इस क्षेत्र के लगभग सभी मंदिर नष्ट कर दिए। मूर्तियों को भंग कर उन्हें बैतरनी नदी में फेंक दिया।
आगामी कुछ वर्षों में राजस्थान के राजा मानसिंग एवं नागपुर के भोंसले मराठाओं ने कुछ मंदिरों का पुनर्निर्माण कराया। उनमें जगन्नाथ मंदिर, सप्तमातृका मंदिर, सिद्धेश्वर मंदिर आदि प्रमुख मंदिर सम्मिलित हैं। १९वीं सदी के आरम्भ से भारतीय स्वातंत्र्य तक यह क्षेत्र ब्रिटिश शासन के अधिपत्य में रहा।
जाजपुर के स्थानिकों ने भारत स्वतंत्रता संग्राम में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। उन्होंने गांधीजी द्वारा दिए गये सभी आवाहनों में भाग लिया था।
जाजपुर – एक सांस्कृतिक एवं राजनैतिक राजधानी
विभिन्न पुरातात्विक स्थलों पर किये गए उत्खननों में प्राप्त सिक्के इस ओर संकेत करते हैं कि जाजपुर विभिन्न कालखंडों में व्यापार मार्ग का एक भाग था।
हिन्दू धर्म, बौद्ध धर्म एवं जैन धर्म, ये तीनों प्राचीन भारतीय धर्म जाजपुर में फले-फूले हैं। कुछ कालखंडों में ये तीनों धर्म एक साथ अस्तित्व में थे। जाजपुर जिले में स्थित कई विशाल बौद्ध मठ इसका जीवंत प्रमाण हैं, जैसे उदयगिरी, रत्नागिरी, ललितगिरी तथा लंगुड़ी पहाड़ अथवा पुष्पगिरी।
आधुनिक जाजपुर
जाजपुर जिले को सन् १९९३ में कटक जिले से विभक्त कर निर्मित किया गया था। वर्तमान में यह ओडिशा का सर्वाधिक सघन वसाहत का जिला है।
इस क्षेत्र में स्थित खनन उद्योग द्वारा हमें क्रोमाइट (एक प्रकार का कच्चा लोहा), लौह अयस्क एवं निकल धातु जैसे खनिज प्राप्त होते हैं। वस्तुतः, क्रोमाइट खनिज उत्पादन में जाजपुर सर्वाधिक अग्रणी खनन स्थल है। क्रोमाइट खनिज का प्रयोग इस्पात जैसे अनेक औद्योगिक उत्पादनों में किया जाता है।
कलिंग नगर एकीकृत औद्योगिक संकुल (Kaling Nagar Integrated Industrial Complex) एक इस्पात केंद्र है जहाँ अनेक अनेक छोटे-बड़े इस्पात कारखाने हैं। एक प्रकार से जाजपुर लौह अयस्क प्रगलन की अपनी प्राचीन धरोहर को अब भी संजोये हुए हैं।
जाजपुर में इस प्रकार के अनेक आधुनिक कालीन उद्योग तथा टसर रेशम बुनाई, काष्ट कारीगरी एवं शैल उत्कीर्णन जैसे अनेक पारंपरिक उद्योग सह-अस्तित्व में हैं। हम इनके विषय में आगामी संस्करणों में विस्तार में चर्चा करेंगे। कृषि उद्योग एवं खनन उद्योग इस जिले के विशालतम आर्थिक कारक हैं। भविष्य में यह देश के महत्वपूर्ण जलमार्गों के स्थल के रूप में भी प्रसिद्ध होगा।
कुल मिलाकर जाजपुर अपनी समृद्ध धरोहर एवं विविध इतिहास के अनेक परतों से सज्ज एक प्राचीन भूमि है जिसे प्रकृति ने संपन्न प्राकृतिक संसाधनों से पोषित किया है। यहाँ अनेक प्रकार के भारी उद्योगों एवं कुटीर उद्योगों का सर्वोत्तम मेल है। ओडिशा के इस अनछुए गहने में जिज्ञासु यात्रियों एवं पर्यटकों के लिए कई माणिक्य छुपे हुए हैं जिनकी खोज में वे जाजपुर की यात्रा कर सकते हैं। यह आपके लिए अवश्य एक रोचक अनुभव सिद्ध होगा।