कला भूमि – भुवनेश्वर ओडिशा का शिल्प संग्रहालय

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कला भूमि – ओडिशा शिल्प संग्रहालय आधुनिक काल के सर्वोत्कृष्ट संग्रहालयों में से एक है जहां ओडिशा की उत्कृष्ट विरासत को कला एवं शिल्प के रूप में सर्वोत्तम रूप से प्रदर्शित किया गया है। भुवनेश्वर नगर में स्थित यह संग्रहालय अत्यंत महत्वपूर्ण संग्रहालय है जिसका अपने ओडिशा यात्रा के समय आप अवश्य अवलोकन करें।

ओडिशा के पारंपरिक शिल्प एवं कला के विषय में आवश्यक जानकारी प्राप्त करने एवं इस अद्भुत कला संग्रह को सराहने में आप कुछ घंटे आसानी से व्यतीत कर सकते हैं।

कला भूमि – ओडिशा शिल्प संग्रहालय

भुवनेश्वर नगर की सीमा पर स्थित इस निजी संग्रहालय में भूतपूर्व कलिंग राज्य की विरासत दर्शाती कला एवं शिल्प की सर्वोत्कृष्ट कलाकृतियों का अद्भुत संग्रह है।

कला भूमि भुवनेश्वर में लघु आकृति
राधा कृष्ण हाथी की सवारी करते हुए

सप्ताह के सातों दिवस खुले इस संग्रहालय में प्रतिदिन दर्शन समयावधि प्रातः १० बजे से सायं ५.३० बजे तक है। संध्या के समय टिकट खिड़की १५ मिनट पूर्व, अर्थात् ५.१५ बजे बंद हो जाती है। यह ध्यान रखें कि जिस दिन आप यहाँ आयें, वह भारत का कोई प्रमुख राष्ट्रीय अवकाश दिवस ना हो क्योंकि उन दिवसों में यह संग्रहालय अतिथियों के लिए बंद रहता है।

भुवनेश्वर के केंद्र से लगभग ८ किलोमीटर दक्षिण-पश्चिम दिशा में स्थित इस संग्रहालय के अवलोकन के साथ आप उदयगिरी एवं खंडगिरी की गुफाओं के भी दर्शन कर सकते हैं। ये गुफाएं संग्रहालय से केवल ३ किलोमीटर दूर स्थित हैं। १२ एकड़ से अधिक क्षेत्रफल में फैले इस संग्रहालय का उद्घाटन सन् २०१८ में ही हुआ है। इस परिक्षेत्र को पोखरिपुट कहते हैं।

कैमरा

संग्रहालय में पहुंचते ही इसका सुन्दर परिसर आपका मन मोह लेगा। हरा-भरा एवं सुव्यवस्थित परिसर, वाहनों  के लिए भरपूर व सुनियोजित व्यवस्था, अतिथियों की मनःपूर्वक सहायता करते कर्मचारी, ये सभी आपको संग्रहालय में प्रवेश से पूर्व ही प्रसन्न कर देंगे । किन्तु अन्य संग्रहालयों के समान इनके भी कुछ विचित्र नियम/प्रणालियाँ/दिशानिर्देश/नियंत्रण हैं जो आश्चर्यजनक हैं।

जैसे, संग्रहालय में पधारे अवलोकनकर्ताओं को कैमरे भीतर ले जाने की अनुमति नहीं दी जाती, ना ही किसी प्रकार से उनके द्वारा चित्र अथवा चलचित्र लेने की अनुमति होती है। उससे अधिक आश्चर्यजनक यह है कि “कैमरे” ले जाने की अनुमति नहीं है, किन्तु मोबाइल फ़ोन ले जाने, उसके कैमरे से चित्र अथवा विडियो लेने पर वे कोई आपत्ति नहीं करते।

संग्रहालय के विभाग

संग्रहालय में पर्यटकों के लिए एक श्रव्य/दृश्य विभाग है जहां अवलोकनकर्ता ओडिशा की कला एवं शिल्प से सम्बंधित अनेक छोटे छोटे चलचित्र देख सकते हैं तथा उन्हें समझ सकते हैं। यदि शिल्प एवं कला की सूक्ष्मताओं को जानने एवं समझने में आपकी रूचि हो तथा आपके पास पर्याप्त समय भी हो तो यह विभाग आपके लिए अत्यंत महत्वपूर्ण एवं उपयोगी सिद्ध होगा।

संग्रहालय के प्रमुख विभाग वे हैं जहां ओडिशा राज्य के सर्वोत्कृष्ट शिल्प कौशल को प्रदर्शित करती कलाकृतियों के उत्कृष्ट नमूने रखे हुए हैं। ये दीर्घाएं सुव्यवस्थित, सुदीप्तमान, उत्तम रूप से प्रस्तुत, संगृहीत एवं प्रदर्शित हैं। यदि आपके मस्तिष्क में कोई प्रश्न अथवा जिज्ञासा हो तो यहाँ के कर्मचारी उसके विषय में जानकारी देने तथा आपकी जिज्ञासा शांत करने में तत्पर रहते हैं।

निकास के निकट स्मारिकाओं की एक उत्तम दुकान है जहाँ से आप सीधे स्थानिक कलाकारों द्वारा प्रमाणित कलाकृतियाँ, हथकरघे द्वारा निर्मित वस्तुएं, हस्तशिल्प इत्यादि ले सकते हैं।

हस्तशिल्प एवं हथकरघा दीर्घाएँ

ओडिशा कला संग्रहालय की कला भूमि में दीर्घाओं को राज्य के विभिन्न विरासती कलाशैलियों के अनुसार अनेक विभागों में विभाजित किया है। इस संग्रहालय में प्रमुखता से स्थानीय परम्पराओं, इतिहास, विरासत, पुरी के जगन्नाथ त्रिदेव एवं भगवान कृष्ण से सम्बंधित अनेक कलाकृतियों एवं कलाशैलियों की प्राधान्यता है।

सूक्ष्म चित्रकारी – कला भूमि

इस दीर्घा में प्राकृतिक रंगों का प्रयोग कर चित्रित की गयी सूक्ष्म चित्रकारियों की प्रदर्शनी है। इन चित्रों में प्राचीनकाल की अनेक कथाएं सन्निहित हैं। यदि प्राकृतिक रंगों, सूक्ष्म चित्रकारियों एवं महान पौराणिक कथाओं की विरासत में आपकी रूचि हो तो आपका अधिकाँश समय इस दीर्घा में व्यतीत होगा। यहाँ ऐसे अनेक चित्र प्रदर्शित हैं। प्रत्येक चित्र का सूक्ष्मता से अवलोकन आवश्यक है। अतः अपने अपने चश्मे धारण कर सज्ज हो जाईये। तभी आप चित्रकार के कलाकौशल की सराहना कर सकेंगे।

सूक्ष्म चित्रकारी से बने राधा कृष्ण
सूक्ष्म चित्रकारी से बने राधा कृष्ण

मेरा विश्वास है, आप उनके गुणों के कायल हो जायेंगे। आप सोच में पड़ जायेंगे कि बिना किसी आवर्धक लेन्स अथवा चश्मे के इन कारीगरों ने ऐसी कलाकृतियाँ कैसे रची हैं! बिना किसी अतिरिक्त सुविधाओं के, चित्रों में इतनी सूक्ष्मता पाना किसी दैवी उपलब्धि से कम नहीं है। इन चित्रों के विषयवस्तु प्रमुखता से भगवान कृष्ण, महाभारत के दृश्य, सामाजिक जीवन तथा प्राचीन काल के सम्राटों के जीवन पर आधारित हैं।

योद्धा रानी घुड़सवारी करते हुए - लघु चित्रकारी
योद्धा रानी घुड़सवारी करते हुए – लघु चित्रकारी

यहाँ चित्रों की कुछ ऐसी श्रंखलायें हैं जिनके द्वारा सूक्ष्म चित्रकारी प्रणाली में प्रयुक्त प्रत्येक चरण को समझा जा सकता है। चित्रों में प्रयुक्त प्राकृतिक रंग सदियों पश्चात भी अखंडित हैं, यह अत्यंत आश्चर्यजनक है। सम्पूर्ण भारत के अनेक संग्रहालयों में संगृहीत ऐसे अप्रतिम सूक्ष्म चित्रों की संख्या एक लाख से अधिक में होगी। अनेकों ऐसे चित्र अब नष्ट भी हो गए हैं।

कृष्ण की कथा कहता एक पट्टचित्र
कृष्ण की कथा कहता एक पट्टचित्र

काठ के उत्कीर्णित चौखट एवं पट्टिकाएं

कला भूमि ने ओडिशा के कुछ विरासती भवनों तथा इमारतों के काठ के मुख्य द्वारों, उनके चौखटों तथा पट्टियों को उत्तम रूप से संरक्षित किया है तथा उन्हें इस संग्रहालय में प्रदर्शित किया है। वे सभी उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित हैं। उन्हें देख अचरज होता है कि कैसे समय, वातावरण, मौसम एवं कदाचित उपेक्षा की मार सहने के पश्चात भी वे उत्तम स्थिति में हैं।

काष्ठ के द्वारों के उत्कीर्णित भाग
काष्ठ के द्वारों के उत्कीर्णित भाग

उन्हें देख आप हमारे पूर्वजों के काष्ठ उत्कीर्णन कौशल के कायल हो जायेंगे। इन वस्तुओं को गढने के लिए टीक जैसे उत्तम लकड़ी का प्रयोग किया गया होगा। उन्हें बनाने से पूर्व कारीगरों की मंशा भी यही रही होगी कि वे वर्षानुवर्ष उत्तम स्थिति में रहें। हमारे पूर्वजों की यही मनःस्थिति एवं जीवनमूल्य अब इक्कीसवीं सदी में दृष्टिगोचर नहीं होते।

आप स्मरण कीजिये कि आपने ऐसे ही उत्कीर्णित द्वार, चौखट अथवा पट्टिकाएं आपके नगर/गाँव के किसी जीर्ण भवन अथवा इमारत में देखी होंगी। ऐसी विरासतों का संरक्षण करना आवश्यक है। उन्हें किसी स्थानिक संग्रहालय में संरक्षित करने का महान कार्य अवश्य करें।

लाख की कलाकृतियाँ

लाख एक प्राकृतिक राल है जो सूक्ष्म कीटों द्वारा बनाया जाता है। यह प्रणाली प्राकृतिक रूप से जंगली है किन्तु अब इनकी खेती भी की जाती है। संभवतः लाखों कीटों द्वारा उत्पन्न होने के कारण इसे लाख कहा जाता है। यह एक अति उपयोगी राल है जिसका प्रयोग अनेक वस्तुओं को बनाने में प्राकृतिक सामग्री के रूप में किया जाता है।

लाख से बने गुड्डे गुडिया - कला भूमि भुवनेश्वर
लाख से बने गुड्डे गुडिया – कला भूमि भुवनेश्वर

जनसामान्य के लिए चूड़ियों में लाख का प्रयोग सर्वविदित है। भारत में हैदराबाद का लाड बाजार लाख की चूड़ियों एवं अन्य वस्तुओं के लिये अत्यंत लोकप्रिय है। कच्चे माल के रूप में लाख का उत्पादन करने में भारत का स्थान विश्व भर में प्रथम है। कला भूमि में आप लाख से निर्मित अनेक सजावटी कलाकृतियाँ देखेंगे।

यहाँ आप एक ओर लाख से बनी गुड़ियां तथा अन्य खिलौने देखेंगे तो दूसरी ओर अनेक ऐसी सजावटी कलाकृतियाँ हैं जिनका प्रयोग भवनों की साज-सज्जा में किया जाता है।

चाँदी में फिलिग्री प्रणाली ने बनी कलाकृतियाँ

चाँदी के आभूषणों का श्रृंगार में अपना विशेष स्थान है। सूक्ष्म कारीगरी एवं उत्कीर्णन में चाँदी अत्यंत लोकप्रिय है क्योंकि चाँदी एक लचीला धातु है। भुवनेश्वर की जुड़वा नगरी कटक, चाँदी पर सूक्ष्म फिल्ग्री नक्काशी करने वाले उत्कृष्ट कारीगरों का गढ़ है। निस्संदेह ओडिशा के इस संग्रहालय में भी फिल्ग्री प्रणाली से उत्कीर्णित कुछ सर्वोत्कृष्ट कलाकृतियों का संग्रह होगा।

चंडी में फिल्ग्री से बनी मोरनी के आकार में नाव
चंडी में फिल्ग्री से बनी मोरनी के आकार में नाव

यहाँ फिल्ग्री प्रणाली से उत्कीर्णित पाल-नौका एक अप्रतिम कलाकृति है जिसमें वायु की शक्ति का प्रयोग कर नौका को चलाने एवं निर्देशित करने के लिए दंड पर पाल बने हुए हैं। दोनों छोरों पर मोर की आकर्षक छवियाँ हैं। यह नौका हमें इस क्षेत्र के प्राचीनकालीन समुद्रीय इतिहास का स्मरण कराती है।

फिल्ग्री चांदी से बना रथ - कला भूमि भुवनेश्वर
फिल्ग्री चांदी से बना रथ

फिल्ग्री प्रणाली में उत्कीर्णित एक आकर्षक घोड़ा-रथ है जो हमें महाभारत युद्ध एवं भागवत गीता का स्मरण करती है।

फिल्ग्री में बर्तन और साज सज्जा का सामान
फिल्ग्री में बर्तन और साज सज्जा का सामान

फिल्ग्री उत्कीर्णन पद्धति से ही बनी अनेक अन्य सुन्दर वस्तुएं भी है जो आपका मन मोह लेंगी, जैसे आभूषण, रसोईघर के पात्र, दोने इत्यादि तथा अन्य घरेलू सामान।

चित्रित नारियल एवं पात्र

सुन्दर चित्रकारी लिए मिटटी का घड़ा
सुन्दर चित्रकारी लिए मिटटी का घड़ा

प्राचीन काल में चित्रकला के कौशल से युक्त कलाकार, माध्यम के रूप में जो वस्तु आसानी से उपलब्ध हो जाती थी उन्ही के द्वारा अपने कला कौशल का प्रदर्शन कर लेते थे। उदहारण के लिए जो प्राकृतिक रंग उपलब्ध होते थे उनसे चित्रकारी करते थे। मिट्टी के पात्र, घड़े इत्यादि तथा सूखे नारियल का चित्रफलक के रूप में प्रयोग कर उन पर अप्रतिम चित्रकारी कर लेते थे।

नारियल के खोल पर चित्रकारी
नारियल के खोल पर चित्रकारी

शिल्पकला, चित्रकला अथवा किसी भी अन्य कला को सीखने एवं उनका प्रदर्शन करने के लिए एक सच्चे कलाकार को किसी विशेष वस्तु की कदापि आवश्यकता नहीं होती, इस तथ्य का सटीक उदहारण है यह संग्रहालय, जहां विभिन्न वस्तुओं पर अप्रतिम चित्रकारी कर उन कलाकृतियों को प्रदर्शित किया है।

पारंपरिक हथकरघा

पारंपरिक हथकरघे की बुनाई के कुछ सर्वोत्कृष्ट उदहारण आप ओडिशा में देख सकते हैं। उनको समर्पित प्रदर्शनी दीर्घा इस संग्रहालय की विशालतम दीर्घा है। ओडिशा के रेशमी एवं सूती, दोनों प्रकार के हस्त निर्मित साड़ियों के कुछ विशेष प्रकार विश्वभर में प्रसिद्ध हैं। उनमें इकत, बांधा, पसपल्ली इत्यादि साड़ियों के प्रशंसक विश्व भर में हैं।

ओडिशा की पारंपरिक हथकरघे की बुनाई
ओडिशा की पारंपरिक हथकरघे की बुनाई

प्राचीन काल में साहसी ओडिया सधबा पुआ अर्थात् व्यापारी गण दक्षिण-पूर्वी एशिया, श्री लंका एवं अन्य देशों की समुद्र मार्ग से यात्रा करते थे तथा सर्वोत्कृष्ट हस्त करघे में बुने वस्त्रों का व्यापार करते थे।

चिरस्थायी, दीर्घकालीन, आधुनिक, हस्तनिर्मित, कालनिरपेक्ष, पर्यावरण अनुकूल तथा अनेक ऐसे विरासती बुनाई तकनीक से बुने वस्त्रों को यहाँ प्रदर्शित किया गया है।

कला भूमि में उत्कीर्णित व चित्रित काठ मुखौटे

काठ के पारंपरिक मुखौटे
काठ के पारंपरिक मुखौटे

गत शताब्दी एवं उससे पूर्व काल में ऐतिहासिक पात्रों एवं घटनाओं को नाट्य प्रदर्शन में दर्शाने के लिए काठ के मुखौटों का एक महत्वपूर्ण भाग होता था। कला भूमि में उत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित व विभिन्न रंगों में चित्रित ऐसे अनेक प्रकार के आकर्षक मुखौटे प्रदर्शित किया गए हैं।

आदिवासी आभूषण

आदिवासी आभूषण - कला भूमि भुवनेश्वर
आदिवासी आभूषण – कला भूमि भुवनेश्वर

ओडिशा अनेक आदिवासी जनजातियों का निवास स्थान है। वे अनेक प्रकार के पारंपरिक चाँदी एवं धातुई आभूषण बनाते व धारण करते हैं। संग्रहालय में प्रदर्शित ऐसे आभूषणों के संग्रह से आप उनके उत्तम कला कौशल का अनुमान सहज ही लगा सकते हैं। यहाँ मैं यह अवश्य उल्लेख करना चाहूंगी कि अदिवासी पारंपरिक कलाकृतियों का इससे कहीं अधिक विशाल एवं विस्तृत संग्रह भुवनेश्वर के आदिवासी संग्रहालय में है।

आदिवासिओं के धातु के बर्तन
आदिवासिओं के धातु के बर्तन

दैनन्दिनी उपयोग के बर्तन एवं पात्रों की प्रदर्शनी अत्यंत रोचक व अनूठी है। यहाँ रखे कुछ अति विशाल पात्र उत्सवों एवं विशेष अवसरों में सामूहिक रसोई की ओर संकेत करते हैं।

संग्रहालय में प्रदर्शित सभी वस्तुएं अत्यंत रोचक हैं। इन्हें सूक्ष्मता से, भरपूर समय देते हुए, ध्यान पूर्वक निहारे। आपको अनेक ऐसी वस्तुएं दृष्टिगोचर होंगी जो आपको अचरज में डाल देंगी।

लाल पकी मिट्टी टेराकोटा की कलाकृतियाँ

मृणमूर्तियाँ
मृणमूर्तियाँ

आप सोच रहे होंगे कि संग्रहालय की अनेक उत्कृष्ट वस्तुओं का मैंने उल्लेख कर दिया है किन्तु अब तक मैंने टेराकोटा का उल्लेख कैसे नहीं किया, जबकि टेराकोटा एक अत्यंत सस्ता, प्रचलित तथा सरलता से ढलने वाला पदार्थ है। तो इस संग्रहालय में भी पदार्थ के रूप में टेराकोटा कैसे पीछे रह सकता है?

जी हाँ, इस संग्रहालय में भी टेराकोटा में निर्मित कुछ अत्यंत आकर्षक कलाकृतियाँ प्रदर्शित हैं।

ताड़ के पत्ते पर चित्रकारी – पट्टचित्र

ताड़ के पत्ते पर चित्रकारी
ताड़ के पत्ते पर चित्रकारी

मैंने पुरी के रघुराजपुर में रहनेवाले पट्टचित्र कलाकारों पर एक संस्करण पूर्व में प्रकाशित किया है। पट्टचित्र कला को समझने के लिए आप वह संस्करण “रघुराजपुर का पट्टचित्र, शिल्पग्राम  पुरी- ओडिशा” अवश्य पढ़ें। इस संग्रहालय में ताड़ के पत्तों पर किये गए कुछ अति उत्कृष्ट चित्र प्रदर्शित हैं।

शैल उत्कीर्णन

प्रस्थर में गढ़े जगन्नाथ
प्रस्थर में गढ़े जगन्नाथ

शिलाओं को सर्वोत्कृष्ट रूप से उत्कीर्णित करने का सर्वोत्तम उदहारण कोणार्क के सूर्य मंदिर के अतिरिक्त अन्य कुछ नहीं हो सकता। इसमें शंका नहीं कि शिलाओं को उत्कीर्णित करने के शिल्प कौशल के लिए ओडिशा राज्य अत्यंत लोकप्रिय रहा है। भगवान जगन्नाथ का प्रिय स्थान होने के कारण यहाँ उनकी अनेक मूर्तियाँ हैं। कोणार्क के सुप्रसिद्ध चक्र के साथ अनेक अन्य उत्कृष्ट शिल्प भी यहाँ प्रदर्शित हैं।

राष्ट्रीय मार्ग पर कोणार्क के उत्कीर्णित शैल चक्र के अनेक सुन्दर प्रतिरूपों ने भी हमारा मन मोह लिया था।

घंटा धातु – ढोकरा धातुई कला

घंटा धातु पर ढोकरा धातुई कला में शिल्प किया हुआ एक विशाल सांड है जिस पर अति सूक्ष्म नक्काशी है। साथ ही जटिल आकृतियों से उत्कीर्णित अनेक गज मुख भी इस संग्रहालय में प्रदर्शित किये हैं। ये ढोकरा धातुई कला के कुछ उत्कृष्ट विरासत हैं।

ढोकरा शिल्प में नंदी बैल
ढोकरा शिल्प में नंदी बैल

घंटा धातु एक कठोर मिश्र धातु है जिसमें ताम्बा, जस्ता एवं रांगा(टिन) धातु का सम्मिश्रण होता है। इसका अधिकतर प्रयोग मंदिर की घंटियाँ बनाने में किया जाता है। स्थानीय भाषा में इसे कान्ह कहा जाता है। भुवनेश्वर के आसपास के जिले इस धातु पर किये शिल्प कौशल के लिए प्रचलित हैं। इस कला को भारत में ढोकरा धातुई कला कहा जाता है। मोहनजोदड़ो के उत्खनन में प्राप्त नृत्य करती कन्या की मूर्ति इस धातुई कला का अनोखा नमूना है।

ढोकरा शिल्प में गजमुख
ढोकरा शिल्प में गजमुख

इस कला का नाम बंजारा जनजाति ढोकरा दामर पर पड़ा है जो ओडिशा एवं अन्य सटे राज्यों के अनेक क्षेत्रों के निवासी थे। ५००० वर्षों से भी अधिक प्राचीन, ढोकरा अलोह अयस्क कला में मोम-ढलाई तकनीक का प्रयोग कर मूर्तियाँ बनाई जाती हैं।  ढोकरा कलाकृतियाँ एवं मूर्तियाँ देश-विदेश में अत्यंत लोकप्रिय हैं।

एकताल शिल्प और कला का गाँव- छत्तीसगढ़” के विषय में पढ़ें। राष्ट्रीय पुरस्कार से अलंकृत ढोकरा कलाकार श्रीमती बुधियारिन देवी के विषय में जानें।

सोलापीठ के हस्तशिल्प (भारतीय काग)

शोला अथवा सोला एक पौधा है जो ओडिशा एवं बंगाल के आर्द्र भूमि के दलदल में उगता है। इसके तने के भीतरी भाग को सुखाया जाय तब यह दुधिया सफ़ेद रंग का मुलायम व अत्यंत हल्का पदार्थ बनता है। इसे सोलापीठ अथवा भारतीय काग कहते है। इस पदार्थ को अत्यंत पवित्र माना जाता है। यह देवी देवताओं की प्रतिमाओं को सजाने व वर-वधु के मुकुट इत्यादि बनाने में  उपयोग में लाया जाताहै। वर्तमान  में कारीगर इससे कई सजावटी वस्तुएं  भी बनाने लगे हैं।

सोलापीठ में माँ दुर्गा
सोलापीठ में माँ दुर्गा

यह थर्मोकोल की तरह दिखने वाला, परन्तु प्राकृतिक पदार्थ है जो लचीलापन, संरचना, चमक व झिर्झिरापन में उससे कई गुना उत्तम है। यह थर्मोकोल से विपरीत, प्राकृतिक रूप से नश्वर पदार्थ है। अतः यह कलाकारों का प्रिय व हस्तकला योग्य पदार्थ है। सोलापीठ में निर्मित भगवान जगन्नाथ एवं देवी दुर्गा की प्रतिमाएं सर्वाधिक लोकप्रिय एवं सुगठित कलाकृतियाँ हैं। यह ओडिशा एवं बंगाल की कला की उत्कृष्ट स्मारिकाएं हैं।

सोलापीठ में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा - कला भूमि भुवनेश्वर
सोलापीठ में भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा

पुरी के जगप्रसिद्ध रथ यात्रा में भगवान जगन्नाथ त्रिदेव के भव्य मुकुट से लेकर कार्तिक पूर्णिमा के दिन मनाये जाने वाले बोइता बन्दना(बाली यात्रा उत्सव) में प्रयुक्त नौकाओं की निर्मिती में शोलापीठ एवं उससे बनी सजावटी वस्तुओं का विस्तृत रूप से प्रयोग किया जाता है। भुवनेश्वर के ओडिशा कला संग्रहालय-कला भूमि में भी सोलापीठ से बनी अनेक अति उत्कृष्ट कलाकृतियों का संग्रह है।

चैती घोड़ा लोकनृत्य के परिधान

संग्रहालय की प्रदर्शनी दीर्घा में बांस के कुछ कृत्रिम घोड़े हैं जिनकी सम्पूर्ण देह पर रंगबिरंगे चमकीले वस्त्रों की अनेक परतें हैं। इन घोड़ों के गले के ऊपर का भाग काठ का बना होता है तथा पीठ पर छिद्र होता है। घोड़ी नृत्य करते समय नर्तक इस ढाँचे के भीतर जाकर, छिद्र से अपना धड़ बाहर निकालता है तथा ढांचे को उठाकर नृत्य करता है। उसे देख ऐसा प्रतीत होता है जैसे घोड़े पर सवार होकर नर्तक नृत्य कर रहा है।

घोड़ों के साथ लोकनृत्य
घोड़ों के साथ लोकनृत्य

घोड़ी नृत्य भारत भर में साधारणतः धार्मिक उत्सवों तथा शोभायात्राओं के समय किया जाता है। कुछ लोगों का मानना है कि इस नृत्य का आरम्भ गुजरात के कच्छ भाग से हुआ था तथा शनैः शनैः सम्पूर्ण भारत ने इसे अपना लिया। गोवा में भी यह उत्सव होली के समय, वार्षिक शिगमोत्सव की शोभायात्रा में उत्साह से किया जाता है। गोवा के घोड़ी नृत्य अथवा घोड़े मोड़नी का यूट्यूब विडियो मेरे चैनल में यहाँ एवं यहाँ देखें।

यात्रा सुझाव

  • कला भूमि की यात्रा से पूर्व इनके वेबस्थल से सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त कर लें।
  • केवल वयस्कों के लिए प्रवेश शुल्क है, वह भी मात्र ५० रुपये है।
  • संग्रहालय में प्रत्येक दिवस एक घंटे की निःशुल्क निर्देशित यात्रा आयोजित की जाती है। संग्रहालय का निर्देशित भ्रमण अनेक भाषाओं में आयोजित किया जा सकता है, जैसे इंग्लिश, हिंदी, ओडिया इत्यादि। किन्तु उनकी समयसारिणी में आपकी प्रिय भाषा के समय की पूर्वसूचना अवश्य प्राप्त कर लें।
  • संग्रहालय में धान शिल्प एवं कुम्हारी का प्रशिक्षण भी आयोजित किया जाता है।
  • यूँ तो आप इस संग्रहालय के अप्रतिम संग्रह के अवलोकन में एक घंटा आसानी से व्यतीत कर सकते हैं। यदि आपकी कला एवं शिल्प में विशेष रूचि है तो स्थानीय कलाकौशल से अवगत होने के लिए कम से कम आधे दिवस का समय अवश्य लगेगा। यदि किसी प्रशिक्षण शिविर में भाग लेना हो अथवा संग्रहालय से सम्बंधित विडियो इत्यादि देखना हो तो कुछ अधिक समय लगेगा।
  • कला भूमि संग्रहालय में अवलोकनकर्ताओं के लिए पेयजल एवं शौचालय की पर्याप्त व्यवस्था है।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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