नव गौरी यात्रा – वाराणसी की नवरात्री

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काशी मंदिरों की नगरी है। यहाँ अनेक धार्मिक यात्राएँ की जाती हैं। मैंने इससे पूर्व काशी की नवरात्रि नवदुर्गा यात्रा , इस विषय पर अपनी यात्रा संस्मरण प्रकाशित की थी। काशी में यह देवी यात्रा नवरात्रि के अवसर पर की जाती है। काशी अथवा वाराणसी में की जाने वाली ऐसी ही एक देवी यात्रा है, नव गौरी यात्रा। यह देवी यात्रा हमें वाराणसी के नौ गौरी मंदिरों के दर्शन कराती है।

इस यात्रा का उल्लेख स्कन्द पुराण के काशी खंड के सौवें अध्याय में भी किया गया है। अन्य अध्यायों में भी कुछ देवियों के विषय में विस्तार से उल्लेख किया गया है।

नव गौरी यात्रा

नवगौरी यात्रा वाराणसी के नौ गौरी मंदिरों की यात्रा कराती है। ये गौरी रूपी शक्ति के नौ अवतारों के मंदिर हैं।

ये सभी मंदिर आकार में लघु हैं। इनमें से कुछ मंदिर अन्य विशाल मंदिर संकुलों के भाग हैं। यद्यपि ये सभी मंदिर तत्वतः प्राचीन हैं, तथापि इनमें से कुछ अपने मूल स्थान पर स्थित नहीं हैं। आप देखेंगे कि कुछ स्थानों  में देवी का मूल स्थान ही देवी के गर्भ गृह या विग्रह का प्रतिनिधित्व कर रहा है।

नव गौरी यात्रा वाराणसी
नव गौरी यात्रा वाराणसी

प्रथम गौरी मंदिर पर लगे सूचना पटल पर सभी मंदिरों के नाम एवं स्थान अंकित हैं। उस पर मंदिर के दर्शन का अनुक्रम भी अंकित है।

काशी की नवगौरी यात्रा कब की जाती है?

प्रत्येक मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया के दिन यह यात्रा करने की परंपरा है। इसका अर्थ है कि श्रेष्ठतम लाभ के लिए वर्ष भर में १२ यात्राएँ की जा सकती हैं।

यह यात्रा वसंत अथवा चैत्र नवरात्रि के नौ दिवसों में भी की जाती है जो सामान्यतः मार्च-अप्रैल मास में पड़ता है।

वाराणसी के नौ गौरी मंदिर

मुखनिर्मालिका अथवा सुखनिर्वाणिका गौरी

गाय घाट पर स्थित हनुमान मंदिर परिसर

नव गौरी यात्रा में सर्वप्रथम इस गौरी मंदिर का दर्शन किया जाता है। स्कन्द पुराण में इस मंदिर की देवी का नाम सुखनिर्वाणिका देवी लिखा हुआ है किन्तु वर्तमान में काशी में यह गौरी मुख निर्मालिका के नाम से जानी जाती है।

मुखनिर्मालिका देवी काशी
मुखनिर्मालिका देवी काशी

मुख निर्मालिका गौरी के दर्शन से पूर्व गोप्रेक्ष तीर्थ में स्नान करने की अनुशंसा की जाती है। यह तीर्थ गाय घाट में गंगाजी के पात्र में स्थित मानी जाती है। इसका अर्थ है कि गौरी के दर्शन से पूर्व हमें गाय घाट पर गंगाजी में स्नान करना चाहिए।

अंग्रेजी पंचांग के मार्च-अप्रैल मास में आने वाली चैत्र पूर्णिमा के दिवस देवी का वार्षिक उत्सव आयोजित किया जाता है। चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिवस भी मुख निर्मालिका गौरी के दर्शन का विधान है।

यह एक लघु मंदिर है। गाय घाट से आप इस मंदिर में आसानी से पहुँच सकते हैं। इस मंदिर संकुल में कई मंदिर हैं। यह मंदिर परिसर दक्षिणमुखी हनुमान मंदिर के नाम से अधिक लोकप्रिय है। इस परिसर में स्थित कुछ अन्य मंदिर हैं, सप्तमातृका मंदिर तथा शीतलामाता मंदिर।

मुख निर्मालिका मंदिर में गौरी के दर्शन के लिए मैं प्रातः शीघ्र आ गई थी। प्रातःकालीन आरती की जा रही थी। उस समय मंदिर में मेरे अतिरिक्त कोई अन्य दर्शनार्थी उपस्थित नहीं था। मुझे ऐसा प्रतीत हो रहा था मानो मेरी माँ का सम्पूर्ण ध्यान केवल मेरी ओर केंद्रित था।

ज्येष्ठा गौरी

काशी देवी मंदिर के निकट, मैदागिन

विशेष दिवस – ज्येष्ठ शुक्ल अष्टमी अथवा ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी। यह साधारणतः मई-जून में पड़ता है। वसंत नवरात्रि अथवा चैत्र नवरात्रि में भी देवी का दर्शन विशेष माना जाता है।

ज्येष्ठा गौरी
ज्येष्ठा गौरी

ज्येष्ठा देवी लक्ष्मीजी  की ज्येष्ठ भगिनी मानी जाती है। ऐसी मान्यता है कि दोनों देवियाँ साथ में पधारती हैं। किन्तु कुछ मान्यताओं के अनुसार ज्येष्ठा को लक्ष्मी की विपरीत-लक्षणा माना जाता है। कुछ कारणों से उन्हे अलक्ष्मी भी कहा जाता है। इसलिए वे लक्ष्मी को आते तथा ज्येष्ठा को जाते हुए देखना चाहते हैं।

काशी में प्रचलित किवदंतियों के अनुसार जो भक्त स्वयं को अभागा मानता है, देवी के दर्शनोपरांत उसके भाग्य का उदय हो जाता है।

सौभाग्य गौरी

आदि विश्वनाथ गली, बाँस फाटक

सौभाग्य गौरी के दर्शन से पूर्व ज्ञान वापी में स्नान को अनुशंसनीय माना जाता था। किन्तु वर्तमान परिस्थिति में यह संभव नहीं है। विकल्प के रूप में आप देवी दर्शन से पूर्व गंगा में अवश्य डुबकी लगा सकते हैं।

जैसे कि नाम से ही विदित है, सौभाग्य देवी के दर्शन से भक्तगणों को सौभाग्य की प्राप्ति होती है। चैत्र नवरात्रि के तीसरे दिवस देवी का दर्शन अत्यंत फलदायी माना जाता है।

शृंगार गौरी

काशी विश्वनाथ मंदिर

शृंगार देवी के दर्शन से पूर्व भी ज्ञान वापी में स्नान करना शुभ माना जाता है। शृंगार देवी का मंदिर ज्ञान वापी मस्जिद के पृष्ठभाग में स्थित था। वर्तमान में यह मंदिर लगभग अस्तित्वहीन हो चुका है किन्तु जहाँ यह  मंदिर स्थित था, उस स्थान को अब भी शृंगार देवी का स्थान माना जाता है।

चैत्र नवरात्रि के चौथे दिवस शृंगार देवी के दर्शन की परंपरा है।

विशालाक्षी गौरी

मीरघाट

गंगा में स्नान करिए, तत्पश्चात काशी के विशालाक्षी शक्तिपीठ के दर्शन करिए। स्कन्द पुराण में विशाल घाट तथा विशाल तीर्थ का उल्लेख किया गया है जो गंगा में ही स्थित है। यह मीर घाट के निकट स्थित है।

शक्ति पीठ विशालाक्षी गौरी
शक्ति पीठ विशालाक्षी गौरी

विशालाक्षी देवी का मंदिर एक लघु मंदिर है। इस मंदिर में देवी के दर्शन के लिए आए भक्तगण अधिकांशतः दक्षिण भारतीय होते हैं। उनकी मान्यता के अनुसार काशी विशालाक्षी उस मंदिर त्रय का एक भाग हैं जिसके अन्य दो भाग हैं, मदुरई रामेश्वरम तथा कांची कामाक्षी। निकट ही विश्व भुजा देवी का मंदिर है जो अनेक अन्य लघु मंदिरों में से एक है।

मैं जब भी इस मंदिर में जाती हूँ, कुछ मंत्र जाप अवश्य करती हूँ। मंदिर में स्थापित गौरी की प्रतिमा को ध्यान से देखने पर ज्ञात होता है कि वहाँ वास्तव में दो विग्रह हैं। प्राचीन विग्रह को आदि विशालाक्षी कहा जाता है जो समक्ष स्थित नवीन विग्रह के पृष्ठ भाग में है।

विशालाक्षी मंदिर के समीप एक विशाल कक्ष के भीतर शिव मंदिर है। आप यहाँ अनेक भक्तों को साधना में लीन पाएंगे। इस साधना में भाग लेना समष्टि एवं व्यष्टि, दोनों रूपों में एक अद्वितीय अनुभव होता है।

नवरात्रि के पांचवें दिवस इस मंदिर में देवी के दर्शन को शुभ माना जाता है। शुक्ल तृतीया यात्रा में अन्य आठ देवियों संग इस मंदिर के दर्शन एक ही दिवस पूर्ण किये जाते हैं।

ललिता गौरी

  ललिता घाट

ललिता घाट पर ललिता तीर्थ में स्नान के पश्चात माँ ललिता गौरी का दर्शन किया जाता है। यह मंदिर वाराणसी के प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट के निकट स्थित है। नेपाल के लोकप्रिय पशुपतिनाथजी के मंदिर का प्रतिरूप भी निकट ही स्थित है।

ललिता गौरी - ललिता घाट काशी
ललिता गौरी – ललिता घाट काशी

आश्विन मास के कृष्ण पक्ष की द्वितीया इस मंदिर की विशेष तिथि है। नवरात्रि में इस मंदिर में ललिता देवी का दर्शन अत्यंत फलदायी माना जाता है।

इस छोटे से मंदिर में बैठकर गंगाजी  का दर्शन करते हुए आनंदमय हो जाईए। शांत चित्त से ध्यान लगाने पर आप यहाँ की ऊर्जा का अनुभव अवश्य कर सकते हैं। देवी की इस दैवी ऊर्जा में स्वयं को ओतप्रोत कीजिए।

भवानी गौरी

अन्नपूर्णा मंदिर

स्कन्द पुराण में किये गए उल्लेख के अनुसार भवानी तीर्थ में स्नान के पश्चात माँ भवानी के दर्शन किये जाते हैं। मेरे अनुमान से यह तीर्थ भी गंगा का ही भाग है।

यह मंदिर अन्नपूर्णा मंदिर परिसर के भीतर स्थित है। मंदिर परिसर में पहुंचकर आप किसी भी संबंधित व्यक्ति से भवानी मूर्ति के विषय में जानकारी ले सकते हैं। यहाँ छायाचित्रीकरण की अनुमति नहीं है।

मंगला गौरी

पंचगंगा घाट

ऐसी मान्यता है कि यहाँ मंगला गौरी की मूर्ती की स्थापना स्वयं सूर्य देव ने की थी। नाम के अनुरूप मंगला गौरी देवी मंगल दायिनी हैं। विवाह इच्छुक अनेक कन्याएँ इस मंदिर में मंगला गौरी के दर्शन करती हैं तथा अपने लिए उचित वर की कामना करती हैं। इसके लिए मंगलवार का दिवस अत्यंत शुभ माना जाता है।

मंगला गौरी
मंगला गौरी

मंगला गौरी के दर्शन से पूर्व बिंदु तीर्थ में स्नान करने का विधान है। मेरे अनुमान से यह तीर्थ निकट स्थित बिंदु माधव मंदिर से संबंधित है।

महालक्ष्मी गौरी

 लक्ष्मी कुंड

काशी नवगौरी यात्रा के अंत में जीवन में स्थायी उपलब्धियों के लिए महालक्ष्मी गौरी की आराधना कीजिए। वाराणसी के लक्ष्मी कुंड क्षेत्र के केंद्र में महालक्ष्मी मंदिर स्थित है। इस लघु मंदिर के चारों ओर अनेक अन्य मंदिर स्थित हैं, जैसे जीवित्पुत्रिका अथवा संतान लक्ष्मी, वैष्णव देवी, शारदा देवी, मयूरी देवी। चंडी मंदिर भी निकट ही स्थित है।

लक्ष्मी कुंड
लक्ष्मी कुंड

सम्पूर्ण लक्ष्मी कुंड क्षेत्र को एक शक्ति पीठ माना जाता है।

मंदिर के निकट एक जलकुंड है जिसे लक्ष्मी कुंड कहा जाता है। यह एक सुंदर स्थल है जहाँ बैठकर ध्यान किया जा सकता है। किन्तु इसकी स्वच्छता पर अधिक ध्यान देने की आवश्यकता है। मुझे बताया गया कि राम कुंड तथा सीता कुंड भी समीप ही स्थित हैं किन्तु उनके दर्शन अभी शेष हैं।

महालक्ष्मी गौरी
महालक्ष्मी गौरी

इस मंदिर में सोलह दिवसीय सोरहिया मेला आयोजित किया जाता है जिसका आरंभ भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष की अष्टमी को होता है।

महालक्ष्मी आदि शक्ति हैं जिनके भीतर तीनों गुण समाहित हैं। देवी के त्रिगुणात्मक स्वरूप को मूर्ती के तीन मुखों द्वारा दर्शाया गया है।

यात्रा सुझाव

काशी के नौ गौरी देवियों के दर्शन का सर्वोत्तम काल है, चैत्र नवरात्रि।

यदि आप सभी नवगौरियों के दर्शन एक ही दिवस करना चाहते हैं तो इसके लिए सभी मास के शुक्ल पक्षों की तृतीया तिथियाँ सर्वोत्तम दिवस मानी जाती हैं।

विशेषतः मंगलवार एवं शुक्रवार के दिन मंदिर भक्तगणों से भरा रहता है।

अधिकांश मंदिर प्रातः काल खुलते हैं, दोपहर के समय बंद होते हैं तथा संध्याकाल पुनः खुल जाते हैं।

ये सभी नौ मंदिर आकार में लघु हैं। अधिकांशतः ये अन्य मंदिर संकुल के एक भाग के रूप में स्थित हैं। इसलिए इन्हे ढूंढने में किंचित कठिनाई हो सकती है। इसके लिए आप किसी स्थानीय जानकार अथवा परिदर्शक की सहायता ले सकते हैं।

अधिक जानकारी के लिए आप काशी प्रदक्षिणा दर्शन समिति से संपर्क साध सकते हैं जो नियमित रूप से ऐसी दर्शन यात्राएं आयोजित करते हैं। उनका कार्यालय असि घाट पर मुमुक्षु भवन में स्थित है।

यदि आप सभी नौ मंदिरों के दर्शन एक ही दिवस पूर्ण करना चाहते हैं तो मेरा सुझाव है कि आप प्रातः अति शीघ्र यह यात्रा आरंभ करें।

जो मंदिर घाट के निकट स्थित हैं, घाट के मध्यम से उन तक पहुँचना अधिक सुगम्य है। अन्य मंदिरों के लिए आप रिक्शा ले सकते हैं।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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