विंध्य पर्वत श्रंखला के एक पहाड़ी क्षेत्र पर, लगभग २००० फीट की ऊंचाई पर विराजमान मांडू एक प्राचीन दर्शनीय धरोहर है। उत्तर में मालवा पठार तथा दक्षिण में नर्मदा की घाटियों से घिरी इस नगरी में कोई भी प्राकृतिक जल स्त्रोत नहीं है। नर्मदा नदी भी मांडू से दूर होने के कारण इसका पालन पोषण करने में असमर्थ है। नर्मदा के जल को २००० फीट की ऊंचाई तक खींचना आसान नहीं है। किसी भी प्रकार के मोटर-चालित प्रणालियों के अभाव में तो यह लगभग असंभव है। अर्थात् पहाड़ी के ऊपर भूजल प्राप्त होना संभव नहीं है।
तो हज़ारों वर्षों से लोग इस पहाड़ी पर जीवन-यापन कैसे कर रहे थे? जी हाँ, मांडू में अद्भुत जल प्रबंधन प्रणाली उपलब्ध थी, जिसके द्वारा यहाँ के निवासियों को जल आपूर्ति की जाती थी। इस प्रणाली के अवशेष किसी ना किसी रूप में अब भी दिखाई पड़ते हैं। इन्हें देख आप आश्चर्यचकित हुए बिना नहीं रह पायेंगे।
चूंकि मांडू में वर्षा ही एकमात्र जलस्त्रोत था, अतः जल प्रबंधन मांडू की एक महत्वपूर्ण आवश्यकता थी। पहाड़ी पर गिरते वर्षा के जल की प्रत्येक बूँद को कुशलता से संचित कर मांडू के नागरिकों ने अपनी सूझबूझ का परिचय दिया है। वर्षा के जल का इतनी सुन्दरता से संचन किया है कि इस पर विश्वास करने के लिए इसका अवलोकन आवश्यक हो जाता है। इनमें से कई ठेठ व्यवहारिक प्रणालियाँ हैं। किन्तु यह तो आप भी मानेंगे कि, आज के युग में कई बार सामान्य व्यवहारिकता की अपेक्षा भी नहीं की जा सकती, ऐसा कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी।
जल प्रबंधन, संचयन एवं संरक्षण – मांडू के प्रमुख आकर्षण
मांडू की जल प्रबंधन प्रणाली के अंतर्गत विभिन्न मापों व आकृतियों के लगभग १२०० जलाशयों का समावेश है। इनमें से कई अब भी अखंड हैं। यदि आप बरसात के मौसम में मांडू आयेंगे तो इनमें से कई जलाशय आपको जल से परिपूर्ण दिखायी देंगे। प्रत्येक जलाशय का अपना विशेष आकर्षण है। आईये आपको मांडू के कुछ महत्वपूर्ण एवं अत्यंत आकर्षक जल स्त्रोतों के दर्शन कराती हूँ।
मांडू किले के राजवाड़े में स्थित जलाशय व बावड़ियां
जहाज महल
यह एक लंबा सा महल है जो दो मानव निर्मित जलाशयों द्वारा दोनों ओर से घिरा हुआ है। इसके नामकरण के पीछे दो कारण हैं। एक यह कि इसकी परछाई एक जहाज के सामान प्रतीत होती है। दूसरा एवं अधिक प्रासंगिक कारण यह है कि जब दोनों जलाशय पानी से लाबालब भर जाते हैं तब यह महल किसी सागर में तैरते जहाज की भान्ति प्रतीत होता है। कुल मिलाकर इसके नाम में भी मांडू के जल प्रबंधन की झलक मिलती है।
मांडू के राजवाड़े में भ्रमण करते समय पग पग पर आपको जल स्त्रोत के दर्शन होंगे जो सौंदर्य की दृष्टी से इस महल के प्रारूप के कलात्मक अंग है।
मुंज ताल एवं कपूर ताल
जहाज महल के प्रांगण में आप जैसे ही प्रवेश करेंगे, अपने बांयी ओर जहाज महल देखेंगे। महल के पृष्ठ भाग पर मुंज ताल तथा दाहिने ओर कपूर ताल है जिसे कई सरिताएं पोषित करती हैं।
कपूर ताल के एक ओर इसमें प्रवेश करता एक मंडप बना हुआ है जिसके भीतर चलते हुए ऐसा प्रतीत होता है मानो हमने ताल के भीतर प्रवेश कर लिया हो। इसके विपरीत मुंज ताल के मध्य एक जल महल बनाया गया है। इसके एक ओर एक स्विमिंग पूल अर्थात् तरण ताल भी है। मुंज ताल का निर्माण राजा मुंजदेव ने करवाया था। यह दोनों तालों में अधिक बड़ा एवं अधिक प्राचीन है। यह एक ओर से खुला हुआ है तथा एक ओर यह जहाज महल के चरण स्पर्श करता है। वहीं कपूर ताल के चारों ओर तटबंध बने हुए हैं जो इसे एक बंद झील बनाते हैं।
जहाज महल में दो अनोखे तरण ताल हैं जिनमें एक की आकृति कुर्म अथवा कछुए की है तथा दूसरा पुष्प के आकार का है। दो भिन्न स्तरों में निर्मित ये ताल अप्रतिम कलाकृति एवं जल की व्यवहारिक आवश्यकता का अभूतपूर्व सम्मिश्रण है। मुझे अचंभा होता है कि उस काल में भी जल का इतनी सफलतापूर्वक संचयन एवं प्रबंधन किया जाता था कि मांडू जैसे वर्षा पर निर्भर स्थान पर भी तरण ताल जैसे जल-विलास साधनों का आसानी से उपभोग किया जाता था।
ऊपरी स्तर पर बने तरण ताल का मैं यहाँ विशेष उल्लेख करना चाहती हूँ। इस ताल की ओर जाती जल सरिताएं वर्तुलाकार नलिकाओं से बहती हैं। इन नलिकाओं की कलाकृति देखते ही बनती है। हमारे परिदर्शक ने हमें बताया कि इन नलिकाओं में रेत भरी जाती थी जिनके द्वारा जल छनता था एवं स्वच्छ जल ताल में भरता था। कुछ सूत्रों के अनुसार ये नलिकाएं जल के प्रवाह की गति धीमी करती हैं। कारण कुछ भी हो, आशा है आधुनिक वास्तुविद इनकी कलात्मकता को आत्मसात करें एवं आज के परिवेश में इनका समावेश करने का प्रयत्न करें।
चंपा बावड़ी
यह एक अत्यंत अनोखी बावड़ी है। यूँ तो यह किसी भी अन्य बावड़ी के सामान एक बड़ा कुआं है जिस में वर्षा का जल भरता है। किन्तु इसकी संरचना अत्यंत कलात्मक है। चम्पा बावड़ी की आतंरिक संरचना चौकोर है तथा बाहर से यह गोलाकार है जिस पर आले बने हुए हैं। इसकी संरचना की विशेषता है इस गोलाकार कुँए के चारों ओर निर्मित बहुमंजिली आवास कक्ष। आप विश्वास नहीं करेंगे, इस कुँए के चारों ओर महल के आवासीय कक्षों की चार मंजिलें निर्मित हैं। इसकी सर्वाधिक ऊपरी मंजिल लगभग मुंज ताल के स्तर तक आती है।
इन्ही बावड़ियों के जल के कारण ये इमारतें शीतलता प्रदान करते हैं। लम्बे गलियारे हवा बहने में सहायता करते हैं। जल संचयन की यह एक अनुपम पद्धति है जो जल उपलब्ध कराने के साथ साथ पर्यावरण के अनुकूल वातानुकूलन प्रदान करता है।
चंपा, यह नाम इस बावडी को चंपा पुष्प के वृक्षों द्वारा प्राप्त हुआ है जो किसी काल में इस बावडी के चारों ओर उगाये गए थे। आप सब भी कल्पना जगत में खो गए होंगे, अतिसुन्दर संरचना, चौड़े गलियारे एवं उनमें बहती चंपा द्वारा सुगन्धित शीतल वायु!
प्राचीन हिन्दू बावड़ी
जहाज महल के ठीक समक्ष एक गहरी एवं सीधी उतार-युक्त बावड़ी है। इसके समीप लगे सूचना फलक पर प्राचीन हिन्दू बावड़ी लिखा है। मैंने अनुमान लगाया, कदाचित यह बावड़ी परमार राजाओं अथवा उससे भी पूर्वकालीन होगी। बावडी के समीप मंदिर के होने को भी नकारा नहीं जा सकता।
उजाला बावड़ी – अँधेरा बावड़ी
जहाज महल परिसर से कुछ ही दूरी पर दो जुड़वा बावड़ियाँ हैं। किसी काल में इनके समीप बाजार परिसर निर्मित था। खुले में निर्मित होने के कारण उजाला बावड़ी एवं अँधेरे में स्थित होने के कारण अँधेरा बावड़ी इनके नामकरण किये गए थे।
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उजाला बावड़ी अत्यंत आकर्षक है। इसकी ज्यामतीय आकृति ने मुझे आभानेरी के चाँद बावड़ी का स्मरण करा दिया था। बावड़ी के दोनों ओर स्थित बुर्ज सदृश मंडप से भी यह बहुत सुन्दर दिखाई पड़ रहा था। मैं मन ही मन उजाला बावडी के चारों ओर जमती संध्या बैठकों की कल्पना करने लगी।
बाज बहादुर महल – जल प्रबंधनण प्रणाली
प्राचीन रेवा कुंड के समीप, एकांत में यह बाज बहादुर महल निर्मित है। रेवा कुंड में भूमिगत झरनों का जल भरता है जो, कहा जाता है कि, नर्मदा नदी से आती हैं।
आपने आज तक बाज बहादुर एवं रानी रूपमती की कई प्रेम कथाएं सुनी होंगी। यहाँ मैं उनकी चर्चा नहीं करना चाहती। अपितु इस महल की एक विशेषता का उल्लेख करना चाहती हूँ। पानी की हर एक बूँद का संचय। आप जब भी इस महल के दर्शन करें, इसकी भित्तियों के ऊपरी भागों को अवश्य देखें। वहां आपको जल नलिकाएं दिखेंगी जो वर्षा का जल एकत्र कर उसे मध्य स्थित कुंड तक पहुंचाती हैं। जहां द्वार स्थित है, वहां ये नलिकाएं नीचे भूमिगत हो जाती हैं तथा द्वार के उस पार फिर ऊपर आ जाती हैं। आश्चर्य!
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बाज बहादुर महल में स्थित कुंड एक खुले प्रांगण के मध्य सममितीय रूप से स्थित है। इसके एक ओर स्थित शाही मंडप तथा दूसरी ओर सज्जित संगीतज्ञों का मंडप अत्यंत सुन्दर है।
संस्मरण का इतना भाग पढ़ कर आप अवश्य सोच रहे होंगे कि ये मंडप भी अवश्य जल प्रबंधन में सम्मिलित होंगे। जी हाँ! आप बिलकुल सही सोच रहे हैं। बाज बहादुर महल के संगीत कक्ष में निकलते संगीत के सुरों को सौम्य बनाने के लिए भी जल का उपयोग किया जाता था। संगीत कक्ष से निकलकर संगीत प्रेमियों से भरे शाही कक्ष तक संगीत के सुर जल द्वारा ही पहुंचते थे। संगीत के इन सुरों में से अवांछित सुरों को पृथक् करने का कार्य भी जल करता था।
रानी रूपमती का मंडप दुर्ग की भित्तियों के समक्ष एक चौकी के सामान है जो दुर्ग की भित्तियों एवं आसपास के क्षेत्र की निगरानी करता प्रतीत होता है। इस महल के नीचे भी लंबा भूमिगत जल कुंड है जहां महल पर गिरते वर्षा का सम्पूर्ण जल एकत्र होता है। आप कल्पना कर सकते हैं, युद्ध काल अथवा ऐसी किसी स्थिति में, मांडू के इस भाग में, राजसी परिवार आसानी से रह सकता था जहां जल प्रचुर मात्रा में उपलब्ध होता था।
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सागर ताल
जहाज महल एवं रूपमती मंडप के दोनों छोरों के मध्य यह विशाल ताल स्थित है। स्थानीय प्रशासन ने इस ताल के ऊपर एक मंडप का निर्माण करवाया है जहां बैठकर आप इस ताल एवं आसपास के हरे-भरे पहाड़ियों के दृश्यों का आनंद ले सकते हैं।
आपने देखा कि मांडू का राजसी परिसर तालों से परिपूर्ण है। यहाँ तक कि मांडू नगरी के लगभग सीमावर्ती क्षेत्र में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर परिसर में भी एक सुन्दर ताल है। यहाँ भी जल संचयन एवं प्रबंधन हेतु नलिकाएं बनी हुई हैं।
मांडू में आप कहीं भी खड़े हो जाएँ, आपको हर ओर बावड़ियाँ, कुँए, कुंड अथवा ताल दिखाई पड़ेंगे। बारीकी से देखने पर आप उन जल नलिकाओं को भी ढूंढ पायेंगे जो वर्षा का जल एकत्र कर इन जल सरोवरों को भरते हैं। कुल मिलाकर मांडू की जल प्रबंधन प्रणाली हमें बहुत कुछ सिखाती है।
इंदौर से मांडू की दूरी
मध्य प्रदेश के इंदौर नगरी में विमानतल है जो हर महत्वपूर्ण स्थानों से वायुमार्ग द्वारा जुड़ा हुआ है। मांडू एवं इसके धरोहर से सर्वाधिक समीप स्थित प्रमुख नगरी इंदौर ही है। मांडू से इंदौर की दूरी लगभग ८० की.मी. है। मांडू की वास्तुकला एवं विरासती धरोहर के साथ साथ यहाँ की वर्षा-आधारित जल प्रबंधन प्रणाली भी पर्यटकों के लिए विशेष आकर्षण है।
मांडू के जल प्रबंधन प्रणाली की सीख
विश्व के जल प्रबंधन/ जल संरक्षण/ जल संचयन से सम्बंधित आज के पेशेवरों/ अधिकारियों के लिए मांडू के प्राचीन जल प्रबंधन प्रणाली/ योजना एवं चलन में बहुत कुछ सीखने योग्य है। आशा है अधिक से अधिक लोग भारत की इस प्राचीन विद्या एवं इसके उपयोग से ज्ञान वर्धन करेंगे एवं विश्व को इसका लाभ पहुंचाएंगे।
अनुराधा जी,
आपने तो सही में ऐतिहासिक स्थल मांडू की यात्रा ही करा दी…मध्य प्रदेश मे स्थित होने से और भी सुखद अनुभूति हुईं । वर्षा के अतिरिक्त और कोई भी जल स्त्रोत उपलब्ध न होने के बावजूद भी इतनी ऊंचाई पर जल संचय करना आश्चर्यजनक हैं ।सच मे सैकडों वर्षों पूर्व निर्मित मांडू की जल प्रबंधन प्रणाली तत्कालिन वास्तुविदों एवम् कारागीरों के अभियांत्रीकीय दृष्टिकोण का बेज़ोड नमुना है ! मांडू की जल प्रबंधन प्रणाली बरबस ही हमें मध्य प्रदेश में ही स्थित बुरहानपुर की लगभग चार सौ वर्षों पुरानी जीवित भू-जल संरचना “कुंडी भंडारा अथवा खूनी भंडारा” का स्मरण कराती हैं ।सुंदर आलेख हेतू साधुवाद !
प्रदीप जी – बुरहानपुर कुण्डी भंडारा पर भी लेख शीघ्र ही आ रहा है. कभी कभी लगता २-४ हाथ और होते तो भारत के और माणिक निकाल कर लाते.
मांडू जिसे हम बचपन मे मांडव के नाम से जानते थे। हम इंदौर वासी मांडू तो बहुत बार गए लेकिन जैसा आपने जलप्रबंधन के बारे में इतना विस्तार से (तकनीकी रूप से) बताया वह हमने कभी भी नही सोचा वाकई जलप्रबंधन आज के संदर्भ में नितान्त आवश्यकता बन चुकी है इससे हमारे समाज को सिख लेना चाहिए।
मांडव का नैसर्गिक सौंदर्य अभी मानसून में अपने पूर्ण यौवन पर रहता है और पर्यटकों को आकर्षित करता है। यहाँ की इमली भी काफी प्रसिद्ध है। एक अच्छे ज्ञानवर्धक आलेख के लिए साधुवाद????????
संजय जी – आशा है मध्य प्रदेश पर्यटन विभाग इस पर ध्यान देगा और एक जल सैर आरम्भ कर्गेया मांडू में। आपके प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद।
इन समस्त जल स्रोतों को हमने बहुत ही करीब से देखा है और वास्तव में प्राचीन काल की यह अद्भुत जल संचयन प्रणाली हमें वर्तमान समय में बहुत कुछ सीखने को प्रेरित करती हैं l बहुत-बहुत धन्यवाद