पुष्कर का ब्रम्हा मंदिर: भारत का एक प्राचीन तीर्थ स्थल

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पुष्कर एक प्राचीन तीर्थ स्थल है जिसका उल्लेख भारतीय शास्त्रों के अनेक पौराणिक कथाओं में पाया जाता है। लोग तुरंत इसका संबंध सम्पूर्ण विश्व के इकलौते ब्रम्हा मंदिर की मिथ्या से जोड़ देते हैं। अन्य स्थलों पर भी ब्रम्हा जी के कई मंदिर देखे जा सकते हैं। हाँ! यह और बात है कि ब्रम्हा जी के मंदिर सामान्यतः दृष्टिगोचर नहीं होते। इनके दर्शन दुर्लभ हैं। यहाँ ब्रम्हा जी से संबंधित कई भ्रांतियाँ एवं किवदंतियाँ अब भी जीवित हैं।

पुष्कर तीर्थ राजस्थान ऐसा माना जाता है कि धरती पर मानव जाति के ४ युगों में प्रत्येक युग का संबंध एक प्रमुख तीर्थस्थल से है। प्रथम युग अर्थात सतयुग का संबंध नैमिषारण्य से, दूसरे युग अर्थात त्रेतायुग का संबंध पुष्कर से, तीसरे युग अर्थात द्वापर युग का संबंध कुरुक्षेत्र से तथा चौथे युग अर्थात वर्तमान में जारी कलयुग का संबंध गंगा से है। गत एक वर्ष में मैंने इन चारों तीर्थस्थलों के दर्शन करने में सफलता प्राप्त की थी। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ था मानो मैं समय को लांघ कर प्राचीन काल में पहुँच गई थी।

पुष्कर ताल

यह ताल पुष्कर नगरी के हृदयस्थल में स्थित है। सम्पूर्ण नगर का जीवन पुष्कर ताल के इर्द गिर्द ही घूमता है। एक पहाड़ी पर सावित्री मंदिर स्थित है। यहाँ से सम्पूर्ण नगर का विहंगम दृश्य प्राप्त होता है। आप यहाँ से ताल, ताल के आसपास बसा पुष्कर नगर तथा नगर के चारों ओर स्थित पहाड़ियाँ देख सकते हैं। यदि भाग्य ने साथ दिया तो आप इन्द्र धनुष भी देख सकते हैं, जैसा कि मैंने देखा था। यह इन्द्रधनुष ताल एवं आकाश के मध्य एक सेतु सा प्रतीत हो रहा था।

पुष्कर ताल के शांत घाट
पुष्कर ताल के शांत घाट

ताल के चारों ओर घाट बने हुए हैं। अधिकतर घाटों की निर्मिती भिन्न भिन्न राजपूताना शासकों ने की थीं। उन पर इन शासकों के नाम भी अंकित हैं। कुछ घाटों के नाम उनके समीप स्थित मंदिरों से संबंधित हैं जबकि कुछ घाटों के नाम उनसे जुड़ी किवदंतियों के आधार पर रखे हुए हैं।

पुष्कर ताल के प्रमुख घाट इस प्रकार हैं:

• ब्रम्हा घाट – ब्रम्हा मंदिर के समीप स्थित यह एक प्रमुख घाट है।
• वराह घाट – प्राचीन वराह मंदिर के समीप यह घाट स्थित है।
• जयपुर घाट – यहाँ के विशालतम एवं सर्वाधिक स्वच्छ घाटों में से एक है।
• यज्ञ घाट – इसे यहाँ का प्राचीनतम स्थल माना जाता है जहां ब्रम्हा ने यज्ञ का आयोजन किया था।
• छींकमाता घाट – यहाँ १५ वीं. शताब्दी का देवी मंदिर है जो देवी के छींकमाता स्वरूप को समर्पित है।
• दधीचि घाट
• सप्तर्षि घाट
• गौ घाट- यहां गांधीजी की अस्थियाँ विसर्जित की गई थीं जिसके पश्चात इसका नामकरण गांधी घाट किया गया है।
• ग्वालियर घाट जिसका निर्माण ग्वालियर के सिंधिया वंश ने किया था।
• कोटा घाट जिसे कोटा के राजा ने बनवाया था।
• करणी घाट
• शिव घाट
• गणगौर घाट जहां गणगौर का उत्सव आयोजित किया जाता है।
• गोबिन्द घाट जिसका संबंध सिख गुरु, गुरु गोबिंग सिंग जी से है।
• स्त्रियों के लिए जनाना घाट
• भदवार घाट अथवा नगर पालिका घाट
• कपालमोचन घाट

पुष्कर ताल के आसपास सैर

ताल के आसपास भ्रमण करते समय आप यहाँ कई छोटे-बड़े मंदिर देखेंगे। इनमें अधिकतर मंदिर शिव को समर्पित हैं। आप आसपास बिखरी हुई कई प्राचीन प्रतिमाएं भी देखेंगे। मुझे यह अत्यन्त विचित्र प्रतीत हुआ। पूछने पर ज्ञात हुआ कि किसी गांववासी के यहाँ यदि कोई प्रतिमा खंडित हो जाती है तो वह उसे यहाँ छोड़ जाता है। आदर्श रूप से तो इन्हे ताल के पवित्र जल में समर्पित किया जाना चाहिए। किन्तु इन्हे आत्मसात करने की ताल की भी एक सीमा है।

वंशावली का लेखा जोखा रखते पुष्कर के पंडित
वंशावली का लेखा जोखा रखते पुष्कर के पंडित

कहीं कहीं भित्तियों पर चित्र बने हुए हैं। किन्तु उनमें वाराणसी के घाट सी भव्यता नहीं है। प्रत्येक घाट पर नाम पट्टिका लगी हुई है जिन पर घाट का नाम एवं उसकी संक्षिप्त जानकारी लिखी हुई है।

एक दृश्य आपको अत्यन्त अनोखा प्रतीत होगा। यहाँ पंडित लाल बहीखाते में पुष्कर में आए तीर्थयात्रियों की वंशावली का अनवरत लेखा-जोखा रखते हैं।

पुष्कर झील का मनोरम दृश्य
पुष्कर झील का मनोरम दृश्य

इस स्थान को आप आसानी से राजस्थान की श्वेत नगरी कह सकते हैं। यहाँ के अधिकतर घाट श्वेत रंग में रंगे हुए हैं। मैं श्वेत रंग को ब्रम्हा से संबंधित भी मानती हूँ।

कुछ दशकों पूर्व तक यह ताल मगरमच्छों तथा मछलियों से भरा हुआ था। ताल के जल में नौका विहार की अनुमति कभी नहीं थी। लेकिन जब गांधीजी की अस्थियों को यहाँ विसर्जन हेतु लाया गया था तब मगरमच्छों को यहाँ से निकाल देने का निर्णय किया गया था। यहाँ के अंतिम कुछ मगरमच्छों को आप भदवार घाट के समीप स्थित एक छोटे मंदिर में देख सकते हैं।

पुष्कर के तीन प्राचीन ताल

कई लोगों की धारणा है कि मुख्य ताल ही पुष्कर की इकलौता ताल है। सच यह है की यहाँ तीन प्राचीन ताल हैं जिनका उल्लेख पद्म पुराण जैसे शास्त्रों में भी प्राप्त होता है। अतः इस समय मैंने अन्य दो ताल को भी ढूंढ निकालने का निश्चय किया। इन तीनो ताल को भिन्न भिन्न नामों द्वारा जाना जाता है। कोई इन्हे ब्रम्हा, विष्णु व रुद्र ताल कहता है तो कोई इन्हे ज्येष्ठ, मध्यम एवं कनिष्ठ ताल के नाम से जानता है।

इनमें से ब्रम्हा पुष्कर प्रमुख ताल है, उपरोक्त जिसका उल्लेख मैंने अभी किया है।

रुद्र पुष्कर

यह एक अत्यन्त मनभावन ताल है जो पुष्कर नगर की बाहरी सीमा पर स्थित है। यदि आप जयपुर की ओर से सड़क मार्ग द्वारा पुष्कर आ रहे हैं तो नगर में प्रवेश करने से पूर्व ही आप इस ताल के दर्शन करेंगे। यह बूढ़ा पुष्कर के नाम से अधिक लोकप्रिय है।

बूढा पुष्कर या कनिष्ठ पुष्कर या रूद्र पुष्कर
बूढा पुष्कर या कनिष्ठ पुष्कर या रूद्र पुष्कर

इस ताल के ऊंचे ऊंचे सुंदर घाट हैं जिन्हे शिलाओं द्वारा निर्मित किया गया है। ताल के उस पार पहाड़ियाँ हैं जिनके प्रतिबिंब ताल के शांत जल पर अत्यन्त मनमोहक प्रतीत होते हैं। घाट के समीप स्नान कुंड बने हुए हैं। मैं यहाँ गणेश चतुर्थी के तत्काल पश्चात आई थी। ताल के समीप गणेशजी की कई छोटी-बड़ी प्रतिमाएं रखी हुई थीं। चारों ओर उनके अभिषेक के चिन्ह स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहे थे। गौमाताएं इधर से उधर यूँ घूम रही थीं मानों संध्या सैर पर निकली हों।

गौमुख रूद्र कुंद
गौमुख रूद्र कुंद

ताल के चारों ओर कई छोटे मंदिर हैं। घाटों के पीछे एक छोटा बाग है जिसके समीप एक छोटी बावड़ी भी है। इस बावड़ी को श्री १०८ श्री रुद्र गौमुख कुंड अथवा सीधे रुद्र कुंड कहा जाता है। इसके एक ओर शिव का एक छोटा मंदिर है। कुंड के चारों ओर १०८ शिवलिंग हैं। ये शिवलिंग एक ही पट्टिका पर हैं। इनके समक्ष एक छोटा नंदी विराजमान है।

जब मैं यहाँ आई थी, यहाँ कोई भी भक्त उपस्थित नहीं था। केवल कुछ गौमाताएं एवं कुत्ते यहाँ-वहाँ भ्रमण कर रहे थे। कदाचित मेरे दर्शन का समय सही नहीं था। यह एक सुंदर ताल है। यदि यह स्वच्छ होती तो सोने पर सुहागा हो जाता!

विष्णु अथवा मध्यम पुष्कर

पुष्कर का मुख्य ताल तो अत्यन्त लोकप्रिय है ही। आप जैसे ही नगर में प्रवेश करेंगे, बूढ़ा ताल भी अपनी उपस्थिति का पूर्ण आभास करा देता है। नगर में सभी इनके विषय में भलीभाँति जानते हैं। किन्तु मध्यम पुष्कर मुख्य मार्ग से छुपा हुआ है। यह कहाँ है, इसे जानने में हमें कुछ समय लगा। इसके समीप पहुंचने के पश्चात ही हमें इसकी ओर संकेत करती सूचना पट्टिकाएं दिखाई दीं।

माध्यम अथवा विष्णु पुष्कर
माध्यम अथवा विष्णु पुष्कर

संध्या के अंतिम प्रहर में, मध्यम पड़ते प्रकाश में भी मैं एक सुंदर बावड़ी देख सकती थी जिसके मध्य में एक गोलाकार कुआं था। इसके चारों ओर छोटे मंदिर थे। वहाँ स्थित एक सूचना फलक के अनुसार यह स्थल चंद्रा एवं सरस्वती नदियों का संगम स्थल है। एक समय यह एक विशाल ताल थी किन्तु अब यह केवल एक बावड़ी है। गुरुवार का दिवस यहाँ के तीर्थ के लिए अत्यन्त महत्वपूर्ण दिवस है।

रुद्र कुंड एवं विष्णु कुंड, इन दोनों की संरचनाएँ ठेठ सीढ़ियाँ युक्त बावड़ी की है जो आभानेरी की चाँद बावड़ी के समान है।

पाँच पांडव तीर्थ

नाग कुण्ड - पञ्च पांडव कुण्डों में से एक
नाग कुण्ड – पञ्च पांडव कुण्डों में से एक

तलहटी के समीप एक छोटा नागेश्वर महादेव मंदिर है जिसके पाँच भिन्न भिन्न कुंड हैं। ये पाँच कुंड पाँच पांडव भ्राताओं से संबंधित हैं। इनके नाम नाग कुंड, चंद्र कुंड, सूर्य कुंड, पद्म कुंड तथा गंगा कुंड हैं। मुझे बताया गया कि यह स्थान काल सर्प दोष निवारण हेतु अत्यन्त उपयुक्त माना जाता है। इसी कारण यह स्थान अत्यन्त लोकप्रिय है। नगर से किंचित दूर होने के कारण यहाँ तक पहुँचने के लिए आपको किसी स्थानीय जानकार की आवश्यकता होगी।

पुष्कर के दर्शनीय स्थल

किसी अन्य तीर्थ स्थल के समान यह स्थान भी मंदिरों से भर हुआ है। आप चाह कर भी इन्हे गिन नहीं पाएंगे। आईए इनमें से कुछ प्रमुख स्थलों से आपका परिचय कराती हूँ:

ब्रम्हा मंदिर

ब्रम्हा मंदिर यहाँ सर्वाधिक लोकप्रिय मंदिर है। इसका संबंध पुष्कर ताल की निर्मिती से संबंधित किवदंती से है। ऐसा माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण ऋषि विश्वामित्र ने किया था। अपनी यात्रा के समय आदि शंकराचार्य ने भी इस मंदिर की रचना में अपना योगदान दिया है। औरंगजेब ने इस मंदिर पर आक्रमण कर इसे क्षति पहुंचाई थी। तत्पश्चात रतलाम के महाराज ने इसे पुनः निर्मित किया था।

ब्रम्हा मंदिर से जुड़ी किवदंती

पद्म पुराण के अनुसार, एक समय ब्रम्हाजी कमल डंडी द्वारा असुर वज्रनाभ का वध करने का प्रयत्न कर रहे थे। इस प्रक्रिया के समय वह कमल तीन स्थानों पर गिरा। उन स्थानों पर पुष्कर के तीनो तालो की रचना हुई।

ब्रह्मा मंदिर का प्रवेश द्वार
ब्रह्मा मंदिर का प्रवेश द्वार

ब्रम्हा ने उनमें से विशालतम ताल पर यज्ञ करने का निश्चय किया। असुरों से इसका रक्षण करने के लिए उन्होंने इस ताल के चारों ओर चार पहाड़ियों की रचना की। तीन पहाड़ियों के ऊपर स्थित तीन देवी के मंदिरों में से किसी भी मंदिर के दर्शन के समय आप इन चार पहाड़ियों को देख सकते हैं।

यज्ञ करने के लिए उन्हे पत्नी सावित्री के सहयोग की आवश्यकता थी। किन्तु सावित्री को पहुँचने में विलंब हो रहा था। समयाभाव के कारण उन्होंने गायत्री से विवाह किया एवं उनके संग यज्ञ किया। इससे सावित्री क्रोधित हो गईं। उन्होंने ब्रम्हा को श्राप दिया कि पुष्कर को छोड़, अन्य किसी भी स्थान पर उनकी आराधना नहीं की जाएगी। तत्पश्चात वे समीप ही पहाड़ी पर जाकर वहीं निवास करने लगीं तथा इस स्थान का रक्षण करने लगीं। जबकि गायत्री ब्रम्हा के संग इस मंदिर में ही निवास करने लगी।

नीले केसरी रंग में ब्रह्मा मंदिर
नीले केसरी रंग में ब्रह्मा मंदिर

ब्रम्हा मंदिर एक ऊंचे आधार पर स्थित है। इसके समक्ष स्थित सीढ़ियाँ मंदिर के प्रवेश द्वार तक ले जाती हैं। छत्रियाँ एवं मंदिर ठेठ राजस्थानी वास्तुशैली में निर्मित है। यह मंदिर जितना लोकप्रिय है, उस अनुपात में विशाल नहीं है। इसमें एक मंडप है जिसके भीतर चटक नीले रंग में रंगे स्तंभ हैं। गर्भगृह का शिखर चटक नारंगी रंग में रंगा है। मंदिर को चौखट में सजाता हुआ एक सुंदर तोरण भी है।

चतुर्मुखी ब्रम्हा मूर्ति

यहाँ ब्रम्हा की चतुर्मुखी मूर्ति है जिसके बायीं ओर गायत्री देवी की प्रतिमा है। दाहिनी ओर स्थित पहाड़ी पर सावित्री देवी का वास है। अपने वाहन हंस पर सवार ब्रम्हा के चार हाथों में अक्षमाला, कमंडल, वेद तथा कुश हैं। इसी परिसर में ब्रम्हा मंदिर के पीछे अम्बा को समर्पित एक छोटा मंदिर है। एक तल नीचे शिव को समर्पित कुछ छोटे मंदिर हैं।

जब भक्त इस मंदिर के दर्शन करते हैं तो पारंपरिक रूप से वे पवित्र जलकुंड में स्नान करते हैं, ब्रम्हा के दर्शन करते हैं तथा इसके पश्चात अन्य मंदिरों के दर्शन करते हैं।

पूर्णिमा एवं अमावस की रात्री इस मंदिर के लिए विशेष हैं। विशेषतः कार्तिक पूर्णिमा जो दिवाली के १५ दिवस पश्चात आती है, सर्वाधिक पावन मानी जाती है।

अटपटेश्वर मंदिर

अटपटेश्वर मंदिर पुष्कर का प्राचीनतम मंदिर है। इसकी सतह भूतल से नीचे है। यहाँ पहुँचने के लिए कुछ सीढ़ियाँ उतर कर एक सँकरे सुरंग के भीतर से आगे जाना पड़ता है जहां से आप एक छोटे कक्ष में पहुंचेंगे। यहाँ एक प्राचीन शिवलिंग स्थित है। ऐसा माना जाता है कि इस शिवलिंग के शिला का रंग एक दिन में कई बार परिवर्तित होता है। मैं इस घटना के दर्शन नहीं कर पायी किन्तु यह अवश्य एक रोचक घटना होगी क्योंकि शिवलिंग तक सूर्य की एक किरण भी नहीं पहुँचती है।

अटपटेश्वर मंदिर के भित्तिचित्र
अटपटेश्वर मंदिर के भित्तिचित्र

किवदंतियों के अनुसार यह वही स्थान है जहां ब्रम्हा द्वारा आयोजित यज्ञ में शिव सहभागी हुए थे।

मंदिर की भित्तियों पर कई प्राचीन चित्र हैं जिन पर गेरुए रंग में १२ ज्योतिर्लिंग चित्रित हैं। यद्यपि चित्र धूमिल होते जा रहे हैं, वे अब भी अत्यंत सुंदर हैं। मंदिर के भीतर स्थित शिवलिंग को घेरे एक सर्प है। कदाचित यहाँ शिव अपने नागेश्वर अथवा पशुपतिनाथ रूप में विराजमान हैं। यहाँ स्थित प्राचीन छवियाँ इस ओर संकेत करती हैं कि किसी समय यहाँ एक विशाल मंदिर रहा होगा।

प्राचीन मंदिर के समीप एक नवीन मंदिर स्थित है। मार्ग पर स्थित नंदी की प्रतिमा अत्यन्त प्राचीन प्रतीत होती है। इन दो मंदिरों में प्राचीनता एवं नाविन्य का अद्भुत सम्मिश्रण है।

वराह मंदिर

वराह घाट के समीप स्थित वराह मंदिर एक प्राचीन मंदिर है। मंदिर के मंच पर धर्मराज की एक विशाल प्रतिमा है। गर्भगृह के भीतर विष्णु के वराह अवतार की एक मनभावन मूर्ति है। यह मंदिर हवेली सा अधिक प्रतीत हो रहा था।

प्राचीन वराह मंदिर का पृष्ठ भाग
प्राचीन वराह मंदिर का पृष्ठ भाग

किन्तु जब आप मंदिर की प्रदक्षिणा करते हुए मंदिर के पृष्ठभाग में जाएंगे, आप मंदिर की प्राचीन पाषाणी संरचना देखेंगे। मंदिर का यह भाग मूर्तियों से वंचित है जिन्होंने किसी समय यहाँ की शोभा बढ़ाई होगी। मैं मंदिर के पीछे बैठकर कुछ क्षण सोच में पड़ गई कि अंततः यह मूर्तियाँ कहाँ चली गईं। किसी संग्रहालय में प्रदर्शित हैं अथवा किसी निजी संग्राहक के संग्रह की शोभा बड़ा रहे हैं या धरती में विलीन हो गई हैं?

रंगनाथजी का पुराना मंदिर

रंगनाथजी का मंदिर दक्षिण भारतीय द्रविड शैली में निर्मित है जिसका गोपुरम अत्यन्त विशाल है। मंदिर परिसर बड़ा है। पुजारी भी दक्षिण भारतीय पद्धति से पूजा अर्चना करते हैं। पूजा अर्चना के समय भक्तों का भीतर जाना वर्जित है।

पुष्कर का प्राचीन रंगनाथजी मंदिर
पुष्कर का प्राचीन रंगनाथजी मंदिर

११ वीं. शताब्दी में निर्मित यह मंदिर वैश्यों के रामानुजचार्य समुदाय का है। मुख्य मंदिर विष्णु के रंगनाथ जी अवतार को समर्पित है। समीप ही लक्ष्मी एवं कोदंबा को समर्पित मंदिर हैं। मंदिर में चारों ओर मनभावन भित्तिचित्र हैं।

मंदिर प्राकार के बाहर एक ऊंचा बुर्ज है। यहाँ आपके द्वारा भरे गए राम नाम लेखन जप पुस्तिकाओं का संग्रह किया गया है। यह मुझे अत्यन्त रोचक प्रतीत हुआ।

मंदिर परिसर में एक छोटा संग्रहालय भी है जहां मंदिर के विभिन्न उत्सवों में प्रयोग में आए तथा आगे प्रयोग आने वाले उत्सव रथों को प्रदर्शित किया गया है। यहाँ एक चित्र दीर्घा भी है जहां पुष्कर के दर्शनीय पावन स्थलों के चित्र हैं। यहाँ छायाचित्रिकरण की अनुमति नहीं है।

नवीन रंगनाथजी मंदिर

पुराने रंगनाथजी मंदिर के समीप ही नवीन रंगनाथजी मंदिर स्थित है। इस मंदिर के विषय में मुझे यहाँ किसी ने यह कथा सुनाई कि एक समय एक धनी सेठानीजी को किसी कारणवश पुराने रंगनाथजी मंदिर में प्रवेश करने से रोका गया था। तब उन्होंने अपने स्वयं के लिए एक नवीन रंगनाथजी मंदिर की स्थापना करवाई।

विश्वकर्मा मंदिर – देवताओं के वास्तुशिल्पकार विश्वकर्मा को समर्पित

देवनारायण एवं रामदेव मंदिर – यह गुज्जर समाज के भक्तों का मंदिर है।

शनि मंदिर – यह महाराष्ट्र के शनि शिंगणापुर मंदिर का प्रतिरूप है।

गिरिधर गोपाल मंदिर – यह एक अत्यन्त मनभावन मंदिर है। इसकी भित्तियों पर आकर्षक भित्तिचित्र हैं। किसी समय यह परशुरामाचार्य आश्रम था।

१०८ महादेव मंदिर – इसी नाम के घाट पर यह मंदिर स्थित है।

एक चौराहे पर एक ऊंचा पाँच मंजिला हनुमान मंदिर है।

पुष्कर के देवी मंदिर

पुष्कर में तीन प्रमुख देवी मंदिर हैं। ये तीनों मंदिर तीन पहाड़ियों के ऊपर हैं जो पुष्कर ताल एवं नगर के चारों ओर स्थित हैं। आईए एक एक कर उनके दर्शन करते हैं।

सावित्री माता मंदिर

सावित्री देवी मंदिर को ले जाती सीढियां
सावित्री देवी मंदिर को ले जाती सीढियां

यह पुष्कर के देवी मंदिरों में से सर्वाधिक लोकप्रिय मंदिर है। इसका कारण कदाचित पुष्कर नगर की रचना से संबंधित कथाएं हैं। सावित्री मंदिर एक त्रिकोणीय पहाड़ी के ऊपर स्थित है। यहाँ पहुँचने के लिए दो मार्ग हैं। पहला मार्ग है ४०० सुघड़ सीढ़ियाँ, जहां से एक घंटे का समय लगता है। दूसरा मार्ग है रज्जुमार्ग अर्थात रोपवे जहां से हम पहाड़ी पर ५ से ६ मिनटों में ही पहुँच जाते हैं। यदि आप शारीरिक परिश्रम से घबराते नहीं तो आप पैदल पहाड़ी के ऊपर पहुँचने के रोमांच का आनंद ले सकते हैं।

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यह एक छोटा मंदिर है। यहाँ सावित्री एवं उनकी पुत्री सरस्वती की संगमरमर में बनी मूर्तियाँ हैं। समीप ही एक छोटी दुकान देवी को अर्पण करने की वस्तुओं की बिक्री करती है। मैंने इस प्राचीन मंदिर के भीतर कुछ क्षण शांति से बिताए।

पुष्कर के दर्शनीय स्थल पहाड़ी पर स्थित इस मंदिर से पुष्कर नगर का अद्भुत विहंगम दृश्य प्राप्त होता है। जिस संध्या मैं यहाँ आई थी, पुष्कर ताल से एक इन्द्रधनुष निकाल कर आकाश तक पहुँच रहा था। ऊपर से आप देख सकते हैं किस प्रकार ये तीनों पहाड़ियाँ पुष्कर नगर का संरक्षण करती हैं। पुष्कर नगर एवं ताल का विहंगम दृश्य, वहाँ की आध्यात्मिकता एवं इनसे जुड़ी किवदंतियाँ एक साथ प्राप्त होना एक अद्भुत अनुभव है।

एकादशी माता अथवा पाप मोचिनि माता मंदिर

यह मंदिर एक दूसरी पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ पहुँचने का एकमात्र मार्ग है ऊंची पहाड़ी की खड़ी ढलान पर पैदल चढ़ना। मैंने तो इस पर चढ़ने का साहस नहीं दिखाया किन्तु मुझे बताया गया कि कुछ भक्तगण बहुधा इस मंदिर के दर्शन करने के लिए इस पहाड़ी पर चढ़ते हैं।

मणिबंध शक्तिपीठ अर्थात मणिवैदिक देवी मंदिर

मणिबंध या चामुंडा शक्तिपीठ
मणिबंध या चामुंडा शक्तिपीठ

यह एक शक्ति पीठ है। जब सती के अग्निकुंड में प्राण न्योछावर करने से क्रुद्ध हुए शिव ने सती की देह को उठाए तांडव नृत्य किया था तब देवी सती की कलाईयाँ यहाँ गिरी थीं। यह मंदिर भी एक ऊंची पहाड़ी पर स्थित है जिसकी चढ़ाई अत्यन्त कठिन है। अतः पहाड़ी की तलहटी पर उनका एक छोटा मंदिर निर्मित किया गया जहां आप देवी के दर्शन कर उनकी आराधना कर सकते हैं।

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यह लाल रंग का छोटा सा मंदिर है। मंदिर के गर्भगृह में देवी के कई स्वरूप हैं। इस मंदिर के समीप भैरव को समर्पित एक मंदिर है। शक्तिपीठ मंदिरों के समीप भैरव मंदिर लगभग अनिवार्यरूप से दृष्टिगोचर होता है। इस देवी मंदिर को  आम भाषा में चामुंडा मंदिर भी कहते हैं।

गायत्री मंत्र पुष्कर
गायत्री मंत्र पुष्कर

गायत्री माता मंदिर – यह मंदिर मुख्य नगर में स्थित है। यह वास्तव में प्राचीन मंदिर नहीं है, जबकि ब्रम्हा मंदिर के भीतर स्थित गायत्री की जो प्रतिमा है, वह प्राचीन है। पीले रंग में रंगे इस छोटे से मंदिर की निर्मिती गायत्री परिवार ने की है। गायत्री से संबंधित साहित्यों को देखने एवं खरीदने के लिए यह उत्तम स्थान है।

छींकमाता मंदिर – यह भी एक छोटा सा मंदिर है जिसके भीतर महालक्ष्मी, महाकाली एवं महासरस्वती के विग्रह अर्थात प्रतिमाएं हैं। छींकमाता का पिंडी स्वरूप भी मंदिर के भीतर विराजमान है। मुझे बताया गया कि नवविवाहित जोड़े विवाह के पश्चात देवी के दर्शनार्थ इस मंदिर में आते हैं।

हिंगलाज माता मंदिर – यह मंदिर पुष्कर ताल के घाट पर स्थित है।

पुष्कर के आश्रम

भारत के प्राचीन तीर्थस्थानों में बहुधा ऋषि-मुनियों के आश्रम भी होते हैं। पुष्कर में अगस्त्य मुनि, विश्वामित्र एवं जमदग्नि ऋषि के आश्रम हैं। अधिकांश आश्रमों तक पहुँचने के लिए पैदल ही यात्रा करनी पड़ती है।

सूरजकुंड का कनबे क्षीरसागर मंदिर

क्षीरसागर मंदिर - सूरजकुण्ड
क्षीरसागर मंदिर – सूरजकुण्ड

मैंने यह मंदिर अकस्मात ही ढूंढ निकाला था। मैं सूरजकुंड नामक स्थान में एक विश्रामगृह (रिज़ॉर्ट) में ठहरी हुई थी। मैंने अपने गाइड से पूछा कि सूरजकुंड का नाम जिस कुंड के कारण पड़ा है, वह कुंड कहाँ है? उन्होंने क्षीरसागर में शेषशायी विष्णु की प्राचीनतम मूर्ति को ओर संकेत किया। उन्होंने बताया कि मंदिर के समीप एक छोटा कुंड अथवा बावड़ी है।

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बाजरा एवं सूर्यमुखी के खेतों के मध्य से गाड़ी चलाते हुए हम यहाँ पहुंचे। एक छोटे गृह सदृश मंदिर में राधा कृष्ण का मंदिर है। इसी कारण इसे गोपी कृष्ण मंदिर कहा जाता है।

इस मंदिर की विशेषता है काले पत्थर में निर्मित विष्णु की एक प्राचीन मूर्ति जो शेषशायी मुद्रा में विराजमान हैं। मंदिर के सूत्रों के अनुसार ८ से १० फीट लंबी यह मूर्ति सर्वाधिक प्राचीन है। उस तर्क से यह विश्व का प्राचीनतम मंदिर माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि यहाँ विष्णु की नाभि से निकले एक कमल से ब्रम्हा की उत्पत्ति हुई थी। विष्णु ने यहीं मधु एवं कैटभ नामक असुरों का वध किया था।

पुष्कर मेला

यह मेला हिन्दू पंचांग के कार्तिक शुक्ल एकादशी से कार्तिक पूर्णिमा तक आयोजित किया जाता है। अर्थात यह मेला दीपावली से ११ वें. दिवस आरंभ होता है तथा ५ दिनों तक रहता है। पुराणों के अनुसार कार्तिक मास के ११ वें. दिवस भगवान विष्णु अपनी ४ मास की निद्रा के पश्चात जागते हैं। इस समय कई पवित्र धार्मिक अनुष्ठान किये जाते हैं तथा उत्सव मनाए जाते हैं। सम्पूर्ण भारत के प्रमुख तीर्थस्थलों में कई उत्सवों का आयोजन किया जाता है। उनमें पवित्र जल में स्नान सर्वाधिक महत्वपूर्ण है।

कार्तिक पूर्णिमा का कई अन्य नामों से भी आयोजन किया जाता है, जैसे गोवा में त्रिपुरारी पूर्णिमा तथा वाराणसी में देव दीपावली।

ऊंट मेला

पुष्कर ऊंट मेले के लिए भी अत्यन्त लोकप्रिय है। प्राचीन काल में लोग कार्तिक पूर्णिमा के दिन पुष्कर ताल के पवित्र जल में डुबकी लगाने के लिए पुष्कर आते थे। दूर-सुदूर से आए तीर्थयात्री आपस में विभिन्न विषयों पर चर्चा करते थे। उन्हे अपने व्यापार के भी अवसर दृष्टिगोचर होने लगे। तब से मवेशियों का व्यापार आरंभ हुआ। रेगिस्तान होने के कारण मवेशियों में प्रमुख रूप से ऊंट होते थे। अब तो ऊंट मेला पुष्कर की वैश्विक पहचान बन गया है।

पुष्कर ऊंट मेले में भाग लेने एवं उसके दर्शन करने विश्व भर से लाखों लोग आते हैं। उस समय सभी होटल एवं अतिथिगृह भर जाते हैं। मेले के मैदान में अनेक तंबू लगाए जाते हैं तथा ऊंटों को सजाया जाता है। गीत-संगीत के सुरों से सम्पूर्ण स्थान गुंजायमान हो जाता है। चारों ओर राजस्थान के रंगों की छटा बिखरी होती है। इन सब का आनंद उठाने अनेक पर्यटक यहाँ आते है।

पुष्कर परिक्रमा

पुष्कर के पावन स्थल के चारों ओर अनेक प्रकार की परिक्रमाएं आयोजित किये जाते हैं। पद्म पुराण में पुष्कर के चारों ओर चार प्रकार की परिक्रमा पथों का उल्लेख है।

एक परिक्रमा है ७.५ कोस अर्थात २१ किलोमीटर की जो पुष्कर मेले के समय आयोजिय की जाती है तथा इसे पूर्ण करने में तीन दिनों का समय लगता है। इस परिक्रमा के विषय में जानकारी आप रंगनाथजी मंदिर से प्राप्त कर सकते हैं।

एक छोटी परिक्रमा घाटों के चारों ओर की जाती है। अधिकतर श्रद्धालु यह परिक्रमा करते हैं। यह लगभग २ किलोमीटर की पैदल यात्रा है जिसे १ से २ घंटों में पूर्ण की जा सकती है। ध्यान रखें कि यह परिक्रमा घड़ी की सूई की दिशा में करें। अर्थात ताल सदैव आपके दाहिनी ओर रहेगा।

पुष्कर में इन व्यंजनों का स्वाद चखें

पुष्कर में राजस्थान के सभी ठेठ व्यंजन मिलते हैं। उनमें से इन दो व्यंजनों का स्वाद आप अवश्य चखें।

कढ़ी पकौड़ी नाश्ता
कढ़ी पकौड़ी नाश्ता

कढ़ी पकोड़ी– पुष्कर के लोकप्रिय चाट भंडार में आप यहाँ की प्रसिद्ध कढ़ी पकोड़ी का नाश्ता अवश्य करें। तेल की कढ़ाई से सीधे पकोड़ियों को दोने में डाला जाता है तथा उसके ऊपर चटपटी कढ़ी परोसी जाती है।
क्या आप जानते हैं कि पुष्कर पूर्णतः शाकाहारी नगर है?

गरमा गरम मालपुआ
गरमा गरम मालपुआ

मालपुआ – राजस्थान के इस लोकप्रिय मंदिर नगर का यह अत्यन्त लोकप्रिय व्यंजन है। ताल के घाटों पर चलते हुए आप बड़े बड़े पात्रों में गर्म गर्म मालपूए देखेंगे। इन्हे आप अवश्य खाएं। मैं जानती हूँ, इन्हे खाने के पश्चात आप मुझे आशीर्वाद अवश्य देंगे।

स्मारिकाएं

अष्टधातु के कुबेर
अष्टधातु के कुबेर

ब्रम्हा मंदिर एवं ताल के चारों ओर की गलियाँ छोटी छोटी दुकानों से भरी हुई हैं। यहाँ से आप इन स्मारिकाओं को ला सकते हैं-
• अष्टधातु में बनी कुबेर की मूर्ति
• गुलाबजल
• गुलकंद
• भित्तियों पर सजाने के लिए तलवारें एवं कटार
• हाथों द्वारा निर्मित आभूषण एवं बस्ते
• लाख की चूड़ियाँ
• ऊंट से निर्मित वस्तुएं

तलवारों की रेहड़ी
तलवारों की रेहड़ी

होटल अर्थात अतिथिगृह

यह एक प्राचीन तीर्थस्थल होते हुए भी सम्पूर्ण विश्व में लोकप्रियता प्राप्त कर चुका है। देशी एवं विदेशी पर्यटकों की सुख-सुविधाओं के लिए यहाँ कई अतिथिगृह एवं होटल हैं। धर्मशालाओं से लेकर सस्ते होटल्स, मध्यम सुविधाएँ युक्त अतिथिगृह तथा नगर के बाहर उच्च स्तर के रिज़ॉर्ट तक उपलब्ध हैं। आप अपने बजट के अनुसार इनका चुनाव कर सकते हैं।

The Westin Pushkar Resort and Spa’ इनके सहयोग से मैंने पुष्कर के पावन नगर का भ्रमण किया था। प्रकृति के सानिध्य में इस रिज़ॉर्ट में निवास करना भी मेरे लिए अत्यन्त आनंददायी था।

पुष्कर एंव आसपास के दर्शनीय स्थलों के दर्शन के लिए आप कम से कम दो दिनों का समय अवश्य रखें।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

4 COMMENTS

  1. पुष्कर का ब्रम्हा मंदिर: भारत ही नहीं पूरे विश्व में ब्रह्मा जी का एकमात्र मंदिर पुष्कर में ही स्थित है मैं यहां तीन चार बार आया हूं लेकिन कभी ज्यादा इस पुष्कर में घुमा नहीं हूं बस पुष्कर ताल और ब्रम्हाजी के मंदिर और वहाँ का बाजार घुमा हुँ, लेकिन पुष्कर एक बहुत अच्छा धार्मिक दर्शनीय स्थल है, अगली बार गया तो आपके द्वारा बताए गए स्थानों के भी दर्शन करूँगा????????

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