वाराणसी, गंगा नदी के तट पर बसा विश्व का प्राचीनतम नगर! वाराणसी का नाम लेते ही नेत्रों के समक्ष मनमोहक गंगा घाट एवं मंदिरों से अलंकृत एक अद्भुत आध्यात्मिक नगर का दृश्य प्रकट हो जाता है। एक ओर जहाँ गंगा नदी ने वाराणसी नगर के सम्पूर्ण तट को अनेक घाटों से संवारा है तो इसके दोनों छोरों पर दूसरी नदियों संग हुए संगमों से इसे सजाया है। वाराणसी के उत्तरी छोर पर वरुणा नदी का गंगाजी से संगम होता है तो दक्षिणी छोर पर असि नदी गंगाजी में समाहित होती है। इन्ही दो नदियों के नाम पर इस नगर का नाम वाराणसी पड़ा.
इन दोनों पवित्र संगमों के मध्य गंगा के अर्धचन्द्राकार तट पर अनेक घाट हैं जहाँ से वाराणसी नगर गंगा नदी के दर्शन करता है तथा असंख्य तीर्थयात्रियों को गंगा माँ के दर्शन-पूजन का अवसर प्राप्त होता है। वाराणसी में लगभग ८४ घाट हैं जिनकी कुल लम्बाई लगभग ६.२ किलोमीटर (लगभग २ कोस) है। उत्तर से दक्षिण की ओर अथवा दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हुए आप इन सभी ८४ घाटों पर पदभ्रमण कर सकते हैं। सभी घाटों का भ्रमण करते समय आपको कुछ स्थानों पर घाटों की ऊँची ऊँची सीढ़ियाँ चढ़नी-उतरनी पड़ सकती हैं। वाराणसी के गंगा घाट अपनी ढलान की तीव्रता के लिए भी जाने जाते हैं।
काशी के घाट
वाराणसी के प्रत्येक गंगा घाट की अपनी एक रोचक कथा है। इनके नामों से इनके संबंधों व कथाओं की झलक अवश्य प्राप्त होती है किन्तु वे सभी सतही स्तर के तथ्य हैं। वाराणसी में अनेक शासकों का साम्राज्य रहा है। यहाँ अनेक संतों एवं ऋषि-मुनियों ने भी तपस्या की है। उन सब से गंगाजी के इन घाटों का प्रगाढ़ संबंध रहा है। इसलिए घाटों के नाम केवल नाम नहीं है अपितु स्वयं में अनेक गूढ़ रहस्यों के भण्डार को समेटे हुए हैं। जिस प्रकार किसी भी जीवंत स्थल का स्वरूप निरंतर परिवर्तित होता रहता है, उसी प्रकार वाराणसी के घाटों के नाम, आकार व रूप में भी सतत परिवर्तन होता रहा है।
गंगा घाट से सम्बंधित मेरी प्रथम स्मृति मुझे मेरे बालपन में ले जाती है जब हम यहीं वाराणसी में निवास करते थे। हम घाट की सीढ़ियाँ उतरते थे, नौका में बैठकर नदी में भ्रमण करते थे, मछलियों को दाना खिलाते थे तथा नदी को पार कर रामनगर दुर्ग के दर्शन के लिए जाते थे। इतने वर्षों पश्चात आज भी मैं जब काशी दर्शन के लिए यहाँ आती हूँ, मैं इन घाटों पर चलती हूँ। इन नौकाओं एवं मल्लाहों से ऐसे बतियाती हूँ जैसे बालपन के सखा आपस में बतियाते हैं।
घाट किसे कहते हैं?
घाट नदी के वे सुन्दर तट होते हैं जहाँ कुछ सीढ़ियाँ होती हैं जो नदी को नगर से जोड़ती हैं। घाट पर इतनी सीढ़ियाँ होती हैं कि भले ही वर्षा के कारण नदी का जल सतह कितना भी ऊपर-नीचे हो जाए, ये सीढ़ियाँ हमें जल तक ले जाती हैं। वाराणसी के घाट भक्तों को गंगाजी के पवित्र जल तक ले जाने का पावन दायित्व निभाते हैं।
भारत की लगभग सभी पावन नदियों के तट पर घाट बने हुए हैं जिसके द्वारा भक्तगण नदियों के जल तक आसानी से पहुँच सकते हैं। इसी प्रकार के सुन्दर घाट नर्मदा नदी के तट पर भी बने हुए हैं। इसका एक उदहारण है, महेश्वर के मनमोहक घाट। यमुना नदी के तट पर मथुरा में भी सुन्दर घाट हैं।
वाराणसी में गंगा की एक विशेषता है कि वह यहाँ उत्तर दिशा की ओर बहती है जबकि उसका प्राकृतिक बहाव दक्षिण दिशा की ओर है। इसी सम्बन्ध में एक लोकप्रिय कहावत है, ‘काशी में तो गंगा भी उल्टी बहती है’। संस्कृत में इसे उत्तरवाहिनी कहते हैं, अर्थात् जो उत्तर दिशा की ओर बहती है, मानो समुद्र में विलीन होने से पूर्व वह अपने उद्गम स्थल का, हिमालय का एक अंतिम दर्शन कर रही हो।
काशी के अर्धचन्द्राकार घाट एवं उस पर स्थित अनेक मंदिर ऐसे प्रतीत होते हैं मानो वहाँ गंगा को घेरती हुई एक विशाल अर्धचन्द्राकार मुक्ताकाश रंगभूमि हो। इनके एक ओर जल है तथा दूसरी ओर बड़ी संख्या में मंदिर के शिखर, आश्रम एवं महल हैं। इनके मध्य है, दोनों ओर के जीवन को जोड़ती कुछ सीढ़ियाँ।
वाराणसी के घाटों पर धार्मिक एवं पर्यटन आकर्षण
वाराणसी के घाटों पर कौन कौन सी भक्ति व पर्यटन संबंधी गतिविधियाँ आयोजित की जाती है? यह जानने के लिए यह समझना आवश्यक है कि वाराणसी का गंगा घाट वास्तव में वाराणसी के सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक तंत्र का केंद्र है। यहाँ अनेक धार्मिक एवं पर्यटन संबंधी आकर्षण उपलब्ध हैं।
गंगा जल पर नौका सवारी
वाराणसी में गंगा जल पर नौका की सवारी करना एक अत्यंत लोकप्रिय गतिविधि है। मुझे नौका सवारी के लिए सूर्योदय का समय अत्यंत प्रिय है जब सूर्य की प्रथम किरणें घाटों एवं वहाँ स्थित अनेक मंदिरों के शीर्ष पर पड़ना आरम्भ होती हैं। एक ओर जहाँ सूर्य की प्रथम किरणें गंगा के जल को स्वर्णिम आभा प्रदान करती हैं, वहीं दूसरी ओर मंदिरों से आती घंटियों एवं मंत्रोच्चारणों के मधुर स्वर सम्पूर्ण वातावरण को पावन कर देते हैं। यह अनुभव इतना अविस्मरणीय होता है कि इसे प्राप्त करने के लिए प्रातः शीघ्र उठना तनिक भी कष्टकारक प्रतीत नहीं होता है।
नौका विहार करते हुए आप खरीददारी भी कर सकते हैं।
गंगा घाटों पर पैदल सैर
घाटों पर पैदल विचरण करना ऐसा अद्भुत अनुभव है मानो हम गंगा माँ, काशी तथा यहाँ उपस्थित ब्रह्मांडीय उर्जा से एकाकार हो रहे हों। उनके अस्तित्व को अंतर्मन में अनुभव कर रहे हों।
यहाँ आप सम्पूर्ण विश्व से आये भक्तों एवं तीर्थयात्रियों से भेंट कर सकते हैं। दूर-सुदूर से आये साधू गण एवं यहाँ साधना रत अनेक साधू-सन्यासियों से चर्चा कर सकते हैं। कौन जाने किस विद्वत व्यक्तित्व से आपकी भेंट हो जाए। मेरे लिए यहाँ आना सदा ही नित-नवीन ज्ञान का स्त्रोत रहा है।
सुन्दर भित्ति चित्रों को निहारें
घाट की भित्तियों पर धार्मिक ग्रंथों में उल्लेखित कथा, दृश्य, व्यंग-चित्र, दोहे, चौपाइयाँ एवं आधुनिक कहावतें चित्रित हैं। ये चित्र आध्यात्म एवं रुढ़िमुक्त मानसिकता का रोचक सम्मिश्रण प्रस्तुत करते हैं। वाराणसी एक ऐसा नगर है जिसके घाट विपरीत मानसिकता को भी पूर्ण सहजता से स्वयं में आत्मसात कर लेते हैं।
वाराणसी के प्रातःकालीन आकर्षण
वाराणसी के घाटों पर प्रातःकाल के समय आप पैदल विचरण कर सकते हैं, योग, ध्यान आदि कर सकते हैं, स्नानादि कर यज्ञ-अनुष्ठान कर सकते हैं तथा कई सांस्कृतिक आयोजनों में भाग भी ले सकते हैं। इसके लिये आपको प्रातः शीघ्र उठकर घाट पर पहुँचना होगा।
गंगा आरती
वाराणसी के घाटों का सर्वाधिक लोकप्रिय आकर्षण यही है, गंगा मैय्या की आरती। पूर्व में यह आरती केवल दशाश्वमेध घाट पर ही की जाती थी किन्तु अब गंगा की आरती वाराणसी के अनेक घाटों पर की जाती है। दशाश्वमेध घाट पर देखें तो इस एक घाट पर भी कई स्थानों पर यह आरती की जाती है।
यह नयन सुख प्रदान करने वाला दृश्य तो होता ही है, साथ ही एक अद्भुत व सम्मोहित कर देने वाला अनुभव होता है। इसे जानने के लिए इसे देखना व इसका अनुभव करना ही एकमात्र पर्याय है।
पुरोहित के सहयोग से पूजा आराधना संपन्न करना
काशी में अनेक भक्तगण इसलिए भी आते हैं कि वे गंगा घाट पर अपने पूर्वजों के लिए तर्पण कर सकें व पूजा-अर्चना कर सकें। अपने कष्ट के निवारण हेतु भी यहाँ पूजा-अर्चना की जाती है।
आईये, अब वाराणसी के कुछ लोकप्रिय घाटों से आपका परिचय कराती हूँ।
वाराणसी के सर्वाधिक लोकप्रिय गंगा घाट
दशाश्वमेध घाट
वाराणसी के अर्धचन्द्राकार तट के मध्य में जो घाट है, उसका नाम दशाश्वमेध घाट है। वाराणसी का मुख्य मार्ग इसी घाट तक आता है। यह वाराणसी का सर्वाधिक लोकप्रिय गंगा घाट है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार इस घाट पर काशी के राजा दिवोदास के लिए ब्रह्माजी ने १० अश्मेध यज्ञ किये थे। इसीलिए इसका नाम दशाश्वमेध घाट पड़ा। इस घटना के सम्मान में यहाँ ब्रह्मेश्वर नामक एक मंदिर भी है। ऐतिहासिक सूत्रों के अनुसार पुरातन काल में यहाँ घोड़ों का व्यापार किया जाता था। कहा जाता है कि यहाँ घोड़े की एक मूर्ति भी थी जो अब खो चुकी है।
इस घाट की लोकप्रियता के मुख्य कारण हैं, सुगम मार्ग, काशी विश्वनाथ मंदिर व अन्नपूर्ण मंदिर से निकटता तथा अत्याकर्षक गंगा आरती। यहाँ का एक अन्य रोचक दृश्य है, भक्तों को विभिन्न अनुष्ठानों में सहायता करते बेंत की छतरियां हाथ में लिए काशी के पंडित। आरती के समय वे निकट के मंदिरों में आरती में भाग लेने में भी आपकी सहायता करते हैं।
असि घाट
यह वाराणसी का दक्षिणतम घाट है जो असि नदी एवं गंगा नदी के संगम पर स्थित है। यहाँ की विशेषता है, संगमेश्वर महादेव मंदिर। पूर्व में यह एक कच्चा घाट था। हाल ही में यहाँ का घाट पक्का किया गया है। प्रत्येक प्रातःकाल यहाँ सुबह-ए-बनारस कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। यज्ञशाला में विभिन्न यज्ञ किये जाते हैं। संध्या के समय गंगा की आरती की जाती है।
असि घाट पुस्तकों की दुकानों तथा भिन्न भिन्न प्रकार के व्यंजनों की दुकानों के लिए भी लोकप्रिय है। मुझे यहाँ का भुना हुआ दाना अत्यन्य प्रिय है जो संध्या के समय मिलता है। इमारतों की छतों पर स्थित आधुनिक जलपानगृहों में उपलब्ध पिज्जा भी मुझे प्रिय है। यहाँ स्थित Pilgrim Book House पुस्तक प्रेमियों को आनंदित कर देता है। यहाँ वाराणसी नगर से सम्बंधित भी अनेक पुस्तकें हैं।
इस घाट से लगा हुआ गंगा महल घाट है जो काशी के राजपरिवार का घाट है।
पंच गंगा घाट
ऐसी मान्यता है कि पंचगंगा घाट पर पांच नदियों का संगम होता है, गंगा, यमुना, सरस्वती, किरण एवं धूतपापा। इसमें से केवल गंगा नदी दृश्यमान है। अन्य नदियों के विषय में मान्यता है कि वे अस्तित्व में होते हुए भी मानवी नेत्रों द्वारा दृश्यमान नहीं हैं।
यह एक प्राचीन घाट है। स्कन्द पुराण के काशी खंड में इसके विषय में उल्लेख किया गया है। यह घाट मुझे संत कबीर की जीवनी का स्मरण करता है। संत कबीर की उनके गुरु रामानंद से प्रथम भेंट इसी घाट की सीढ़ियों पर एक प्रातः हुई थी।
संत तुलसीदास ने भी उनकी प्रसिद्ध कृति विनय पत्रिका की रचना इसी घाट पर बैठकर की थी। इस घाट के दीर्घकालीन इतिहास की झलक आप यहाँ बने भित्तिचित्रों पर देख सकते हैं।
तुलसी घाट
इस घाट का नामकरण संत तुलसी दासजी पर किया गया है। तुलसीदास जी ने रामचरितमानस एवं हनुमान चालीसा जैसी महान कृतियाँ हमें प्रदान की हैं जिनके कुछ भाग उन्होंने इसी घाट पर बैठकर रचे हैं। गंगा नदी के समक्ष स्थित उनका निवास स्थान आप देख सकते हैं। यह एक शांति प्रदायक स्थान है जो ध्यान लगाने व शांत चित्त होकर कुछ लिखने की प्रेरणा देते हैं।
तुलसी घाट के निकट तुलसी अखाड़ा भी है जहाँ आप पहलवानी एवं कुश्ती करते खिलाड़ियों को अभ्यास करते देख सकते हैं।
सांस्कृतिक रूप से भी यह घाट अत्यंत महत्वपूर्ण है। यहाँ रामलीला का आयोजन किया जाता है। निकट ही संकट मोचन मंदिर है। यहाँ ध्रुपद मेला नामक एक पांच-दिवसीय संगीत उत्सव भी आयोजित किया जाता है।
तुलसी घाट के निकट भदैनी घाट है जहाँ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण लोलार्क कुण्ड स्थित है। यहाँ चामुंडा देवी एवं महिषासुरमर्दिनी के मंदिर भी हैं।
केदार घाट
ऐसी मान्यता है कि काशी नगर भगवान शिव के त्रिशूल पर स्थित है। त्रिशूल के तीन शीर्ष को दर्शाते तीन मंदिर हैं, केदारेश्वर, विश्वेश्वर अथवा काशी विश्वनाथ एवं ओंकारेश्वर। इनमें से केदारेश्वर मंदिर गंगा नदी के तट पर स्थित होते हुए गंगा से निकटतम दूरी पर स्थित है। इसी कारण इस घाट का नाम भी केदार घाट पड़ा। केदारेश्वर मंदिर काशी के सर्वाधिक महत्वपूर्ण मंदिरों में से एक है।
स्कन्द पुराण के काशी खंड में इसका उल्लेख भी किया गया है।
राज घाट
पुरातात्विक एवं साहित्यिक सूत्र इस ओर संकेत करते हैं कि आरंभिक काल में वाराणसी नगर इसी घाट के आसपास बसा हुआ था। नगर के दक्षिणी भाग पर आनंद कानन स्थित था जो भगवान शिव का प्रिय वन था। कालांतर में वाराणसी नगर इन घाटों के निकट विकसित होते होते असि घाट तक पहुँच गया तथा उसके भी पार पहुँच गया। वर्तमान में राज घाट इन घाटों की उत्तरी सीमा को दर्शाता है जहाँ गंगा के ऊपर मालवीय सेतु बनाया गया है।
गायघाट
किसी समय इस घाट पर गायें जल पीने के लिए आती थीं। मैं यहाँ मुखनिर्मालिका गौरी के दर्शन करने आती थी जिनका मंदिर इस घाट पर हनुमान मंदिर में स्थित है। चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिवस इनकी पूजा का विशेष महत्त्व है। वाराणसी की सुप्रसिद्ध गुलाबी मीनाकारी की वस्तुएं भी यहाँ उपलब्ध हैं।
वाराणसी के अग्नि घाट
मणिकर्णिका घाट
मणिकर्णिका घाट वाराणसी के इन दो घाटों में से एक है जहाँ चौबीसों घंटे चिताएं जलती रहती हैं। इस घाट को यह नाम यहाँ स्थित मणिकर्णिका कुण्ड से प्राप्त हुआ है जिसके विषय में मान्यता है कि यह कुण्ड वाराणसी में गंगा के आने के पूर्व से स्थित है।
इस कथा के अनुसार भगवान विष्णु ने यहाँ भगवान शिव एवं देवी पार्वती के स्नान के लिए एक कुण्ड की रचना की थी। एक बार स्नान करते समय माता पार्वती के कान का एक मणि जड़ित कुंडल इस कुण्ड में गिर गया। इसी कारण इस कुण्ड का नाम पड़ा, मणिकर्णिका।
इस घाट पर विष्णु भगवान ने भी तप किया था। ऐसी मान्यता है कि भगवान शिव उन मानवों को तारक मंत्र प्रदान करते हैं जिनकी मृत्यु वाराणसी के पावन धरती पर होती है। यह मंत्र उन्हें जन्म-मृत्यु के चक्र से मुक्त करता है। वाराणसी के सम्पूर्ण घाट के लगभग मध्य में स्थित इस घाट को बिना देखे आप यहाँ से जा नहीं सकते।
हरिश्चंद्र घाट
मैसूर घाट एवं गंगा घाट के मध्य स्थित यह हरिश्चंद्र घाट भी दिवस-रात्रि प्रज्वलित होता रहता है। यह काशी के दो अग्नि घाटों में से अपेक्षाकृत पुरातन है।
इस घाट का नामकरण अयोध्या के राजा हरिश्चंद्र के नाम पर किया गया है जो सदा सत्यवादी होने एवं किसी भी मूल्य पर अपने वचन का पालन करने के लिए प्रसिद्ध हैं। उनकी कथा के अनुसार राजा हरिश्चंद्र ने ऋषि विश्वामित्र को दिए गए अपने वचन का पालन करने के लिए अपनी पत्नी एवं पुत्र की नीलामी कर दी तथा स्वयं इस स्मशान घाट पर चिता जलाने का कार्य करने लगे। यह कथा प्रभु श्री राम के काल से पूर्व, कदाचित त्रेता युग की है। इसका अर्थ है कि यह घाट अत्यंत प्राचीन है।
मणिकर्णिका घाट के समान यहाँ भी दिवस-रात्रि चिताएं जलती रहती हैं। नौका सवारी के समय आप इस घाट को स्पष्ट देख सकते हैं। वृद्ध केदार का मंदिर भी इसी घाट पर स्थित है।
काशी के राजसी गंगा घाट
सम्पूर्ण भारत के अनेक राज परिवारों के सदस्य काशी यात्रा पर आते रहे हैं। काशी में उन सभी राज परिवारों के निजी स्वामित्व के भूभाग हैं जो अधिकांशतः गंगा के सानिध्य की अभिलाषा में इन घाटों के निकट स्थित हैं। आईये वाराणसी के ऐसे ही कुछ राजसी घाटों का भ्रमण करते हैं।
चेत सिंग घाट
इस घाट का निर्माण १८वीं सदी में काशी नरेश चेत सिंग ने करवाया था। उनका गढ़ अथवा महल इसी घाट पर स्थित है। देव दीपावली के दिवस इस घाट पर वाराणसी के पौराणिक व ऐतिहासिक महत्त्व पर लेजर प्रदर्शन किया जाता है।
यह घाट १८वीं सदी में काशी नरेश चेत सिंग एवं अंग्रेज गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग के मध्य हुए युद्ध का साक्षी भी रहा है। यह घाट एवं समीप स्थित प्रभु घाट, ये दोनों अब काशी राज परिवार के निजी घाट हैं।
मान मंदिर घाट
यह वाराणसी के सर्वाधिक सुन्दर घाटों में से एक है जिसका निर्माण जयपुर के महाराजा सवाई मानसिंग जी ने सन् १७७० में करवाया था। महाराजा मान सिंग द्वारा निर्मित ५ खगोलशास्त्रीय वेधशालाओं में से पांचवीं वेधशाला यहाँ स्थित है। इन पाँचों वेधशालाओं को जंतर-मंतर कहा जाता है। मुझे बताया गया कि यहाँ स्थित संग्रहालय शाश्वत नगर काशी के विषय में अविस्मरनीय अनुभव प्रदान करता है।
नेपाली घाट
नेपाली घाट का निर्माण नेपाल के राजाओं ने करवाया था। इसी कारण यहाँ काठमांडू घाटी की शैली में निर्मित भगवान पशुपतिनाथ जी का एक अप्रतिम काष्ठ मंदिर है। इसे नेपाली मंदिर भी कहते हैं। मंदिर के संरक्षण का कार्य भी नेपाल सरकार करती है।
ग्वालियर घाट
पूर्व में यह घाट पंचगंगा का एक भाग रहे जटार घाट का एक अंग था। १९वीं सदी में ग्वालियर के महाराज जीवाजी राव सिंधियाजी ने इस घाट का जीर्णोद्धार कराया था जिसके पश्चात इस पक्के घाट को ग्वालियर घराने की पहचान प्राप्त हुई।
बाजीराव घाट
इस घाट का निर्माण महाराष्ट्र के बिठुर के बाजीराव पेशवाजी ने सन् १८२९ में करवाया था। इस घाट पर भगवान शंकर का एक प्राचीन मंदिर भी है।
पंचकोट घाट
प्रभु घाट के उत्तरी छोर पर स्थित इस घाट का एवं इस घाट पर स्थित एक लघु राज महल का निर्माण १९वीं सदी में बंगाल के पंचकोट रियासत के राजा ने करवाया था। यहाँ शिव एवं काली के मंदिर भी हैं किन्तु धार्मिक अनुष्ठानों की दृष्टि से यह घाट अधिक महत्वपूर्ण नहीं है।
कर्णाटक घाट
यह घाट मैसूर रियासत के स्वामित्व के अंतर्गत आता है। इस घाट पर सति को समर्पित एक मंदिर भी है।
विजयनगरम घाट
दक्षिण भारत के विजयनगरम राजाओं द्वारा इस घाट का जीर्णोद्धार किया गया था। इस घाट पर करपात्री जी महाराज ने अपने करपात्री आश्रम में निवास किया है।
राणा महल घाट
इस घाट का निर्माण उदयपुर के राणा ने करवाया था। उदयपुर के राणाओं का ठेठ राजस्थानी शैली में निर्मित एक महल भी यहाँ स्थित है।
दरभंगा घाट
दशाश्वमेध घाट एवं राणा महल घाट के मध्य स्थित इस घाट का नाम दरभंगा के राजपरिवार के नाम पर रखा गया है जिन्होंने इस घाट का निर्माण करवाया था। इसके अतिरिक्त उन्होंने यहाँ गंगा के तट पर एक भव्य महल का भी निर्माण करवाया था जिसे अब एक लोकप्रिय अतिविलासी होटल में परिवर्तित किया गया है। मैंने इस महल रूपी होटल को भीतर से भी देखा है। यह भीतर से अत्यंत आकर्षक है तथा यहाँ से गंगा एवं उसके घाटों का अप्रतिम दृश्य दिखाई देता है।
अहिल्याबाई घाट
मालवा की रानी अहिल्याबाई होलकर ने १८वीं सदी में वाराणसी के अनेक घाटों का जीर्णोद्धार करवाया है। यह घाट उन्ही में से एक है। पूर्व में इसे केवलागिरी के नाम से जाना जाता था। अब इसका नामकरण अहिल्याबाई घाट किया गया है।
रानी अहिल्याबाई ने काशी विश्वनाथ मंदिर एवं मणिकर्णिका घाट का भी पुनरुद्धार किया था। इस घाट पर भी एक महल है। मेरा अनुमान है कि मालवा के राज परिवार के सदस्य जब भी काशी यात्रा पर आते थे, तब वे इसी महल में निवास करते थे।
देवी-देवताओं से सम्बन्धित गंगा घाट
ललिता घाट / राजराजेश्वरी घाट
इस घाट का नामकरण काशी नगर में स्थित नौ गौरी मंदिरों में से एक, ललिता गौरी के नाम पर किया गया है।
चौसट्टी घाट
यह घाट ६४ योगिनियों को समर्पित है। समीप ही ६४ योगिनी मंदिर स्थित है। चौसट्टी देवी को जागृत पीठों में से एक माना जाता है।
त्रिपुरा भैरवी घाट
इस घाट को वाराही घाट भी कहते हैं। घाट की ओर आते मार्ग पर त्रिपुरा भैरवी का एक प्राचीन मंदिर है। इस घाट के समीप ही आदि वाराही मंदिर स्थित है। घाट पर दयानंद गिरिजी का मठ भी है। चैत्र एवं शारदीय नवरात्रि में अनेक भक्तगण इस घाट पर आते हैं।
संकटा घाट
संकटा देवी के प्रसिद्ध मंदिर के नाम पर इस घाट का नाम संकटा घाट पड़ा है। इसके आसपास सिद्धिदात्री, यमेश्वर एवं यमादित्य के भी मंदिर हैं।
मंगला गौरी घाट
मंगला गौरी मंदिर एवं मंगल विनायक मंदिर के कारण इस घाट का नाम मंगला गौरी घाट रखा गया।
जानकी घाट
इस घाट का निर्माण सुरसंड (सीतामढ़ी) ने करवाया था। यहाँ सीताजी को समर्पित एक मंदिर है। इसीलिए इस घाट को जानकी घाट कहते हैं।
हनुमान घाट
इस घाट पर हनुमानजी एवं नवग्रह के मंदिर हैं। इसके समीप स्थित घाट को पुराना हनुमान घाट कहते हैं जहाँ मान्यताओं के अनुसार, भगवान श्री राम, उनके तीन भ्राताओं, सीताजी एवं हनुमानजी द्वारा निर्मित शिवलिंग स्थापित हैं।
नारद घाट
ऐसी मान्यता है कि इस घाट पर नारदजी ने शिवलिंग की स्थापना की थी। इसीलिए इस घाट को नारद घाट कहते हैं। कालांतर में यहाँ दत्तात्रय मठ की भी स्थापना की गयी थी।
शीतला घाट
इस घाट पर शीतला माता का मंदिर है। यह घाट प्रसिद्ध दशाश्वमेध घाट के निकट स्थित है।
गणेश घाट
पूर्व में यह घाट विघ्नेश्वर घाट के नाम से जाना जाता था। कालांतर में पेशवाओं ने यहाँ गणेश मंदिर का निर्माण करवाया था जिसके पश्चात् इसे गणेश घाट कहा जाता है।
राम घाट
इस घाट पर स्थित राम पंचायतन मंदिर के कारण इस घाट को राम घाट कहते हैं।
वेणीमाधव घाट / बिंदुमाधव घाट
प्राचीन काल से इस घाट को बिंदुमाधव घाट के नाम से जानते हैं। इस घाट पर बिंदुमाधव भगवान विष्णु का मंदिर स्थापित था जो यहाँ का विशालतम विष्णु मंदिर था। औरंगजेब ने इस मंदिर को नष्ट कर यहाँ एक मस्जिद का निर्माण कर दिया था। अब यह मंदिर समीप ही एक गली में स्थित है।
दुर्गा घाट
यह घाट ब्रह्मचारिणी मंदिर के निकट स्थित है। यह घाट काशी की नवदुर्गा यात्रा का एक भाग है।
ब्रह्मा घाट
इस घाट का नाम ब्रह्मेश्वर मंदिर के नाम पर रखा गया है। यह ब्रह्माजी से संबंधित दूसरा घाट है। यहाँ गौड़ सारस्वत ब्राह्मण कुल का काशी मठ भी स्थापित है।
बद्रीनारायण घाट
इस घाट पर बद्रीनारायण मंदिर है जो गढ़वाल पहाड़ियों पर स्थित बद्रीनाथ मंदिर के समान है। पूर्व में यह महता घाट के नाम से जाना जाता था। इस घाट के समक्ष गंगा को नर-नारायण तीर्थ सदृश माना जाता है।
नंदी घाट
इस घाट का नाम भगवान शिव के वाहन नंदी पर रखा गया है।
शिवाला घाट
इस घाट पर भगवान शिव का एक मंदिर है। यह घाट पूर्व काशी नरेश की निजी संपत्ति है।
प्रह्लाद घाट
इस घाट का नाम भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद पर रखा गया है। ऐसी मान्यता है कि इस घाट के समीप ही भगवान विष्णु ने दैत्य हिरण्यकश्यप से प्रह्लाद के प्राणों की रक्षा की थी। इस घाट पर प्रह्लादेश्वर शिव, प्रह्लाद केशव, विष्णु, शीतला, नृसिंह आदि देवताओं के मंदिर हैं। इस घाट के समक्ष गंगा को बाण तीर्थ माना जाता है।
आदिकेशव घाट
आदि केशव घाट काशी का प्राचीन विष्णु तीर्थ माना जाता है। गंगा- वरुणा संगम स्थल पर स्थित इस उत्तरतम घाट का उल्लेख स्कन्द पुराण में भी किया गया है। यहाँ आदिकेशव मंदिर समूह है जिनमें आदिकेशव, ज्ञानकेशव, पंचदेवता एवं संगमेश्वर मंदिर हैं।
काशी में संतों के गंगा घाट
आनंदमयी घाट
पूर्व में यह घाट इमलिया घाट के नाम से जाना जाता था। सन् १९४४ में प्रसिद्ध साध्वी माता आनंदमयी ने इस स्थान को अंग्रेजों से क्रय किया तथा यहाँ एक विशाल आश्रम की स्थापना की।
निरंजनी घाट
इस घाट पर नागा साधुओं का निरंजनी अखाड़ा है। यहाँ चार मंदिर हैं। एक मंदिर में निरंजनी महाराज की पादुकाएं हैं। अन्य मंदिर दुर्गा, गौरी-शंकर, कार्तिकेय एवं गंगा माता को समर्पित हैं।
महानिर्वाणी घाट
यह घाट निरंजनी घाट के पूर्व में स्थित है। इसका संबंध नागा साधुओं के महानिर्वाणी सम्प्रदाय से है। यहाँ उनका प्रसिद्ध अखाड़ा भी है। इसके भीतर चार शिव मंदिर हैं जिनका निर्माण नेपाल नरेश ने करवाया था। ऐसी मान्यता है कि ७वीं सदी में सांख्य दर्शन के आचार्य कपिल मुनि ने यहाँ निवास किया था। ऐसी भी मान्यता है कि इस घाट पर भगवान बुद्ध ने स्नान किया था।
लाली घाट
चंपारण के लाली बाबा के नाम पर इस घाट को लल्ली अथवा लाली घाट कहते हैं। यहाँ उनका गुदरदास अखाड़ा भी है।
वाराणसी के सम्प्रदाय विशेष गंगा घाट
जैन घाट
७वें जैन तीर्थंकर सुपार्श्वनाथजी का जन्म वाराणसी में हुआ था। उनका जन्मस्थान वाराणसी के इस घाट के समीप था। इस घाट पर एक श्वेताम्बर जैन मंदिर है जिसके कारण इस घाट का नाम जैन घाट पड़ा है।
निषादराज घाट
घाट क्षेत्र में निषाद मल्लाह जाति के लोगों की बहुलता है। निषाद समाज से ही परिचय प्राप्त इस घाट को निषाद घाट कहा जाता है। रामायण में निषादराज का चरित्र अत्यंत महत्वपूर्ण है। वे एक मल्लाह थे, मल्लाहों के राजा थे तथा श्री राम के परम भक्त व मित्र थे। उन्ही की स्मृति में इस घाट पर निषादराज का मंदिर भी स्थित है।
काशी के अन्य गंगा घाट
प्रयाग घाट
वाराणसी में प्रयाग घाट की अनुपम धार्मिक महत्ता है। इस घाट को तीर्थराज प्रयाग के रूप में मान्यता प्राप्त है। हिन्दू धर्म में ऐसी परंपरा रही है कि सभी प्रमुख तीर्थों की अन्य तीर्थों में भी उपस्थिति मानी जाती है।
काशी में प्रयाग तीर्थ की उपस्थिति इस घाट में मानी जाती है। इस घाट पर शूलटंकेश्वर, प्रयागेश्वर, ब्रह्मेश्वर, लक्ष्मी-नारायण आदि मंदिर हैं। ऐसी मान्यता है कि दस अश्वमेध यज्ञ की समाप्ति पर ब्रह्मा ने इस घाट पर ब्रह्मेश्वर लिंग की स्थापना की थी।
राजेंद्र प्रसाद घाट – यह घाट भारत के प्रथम राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद को समर्पित है।
लाल घाट
इस घाट को सन् १९३५ में राजा बलदेव दास बिड़ला ने क्रय किया था। इस घाट पर गोप्रेक्षेश्वर शिव एवं गोपीगोविन्द मंदिर हैं। इस घाट पर बलदेव दास बिड़ला संस्कृत विद्यालय, छात्रावास एवं बिड़ला धर्मशाला भी स्थित हैं।
वाराणसी के घाटों एवं उनकी महत्ता को जानने में पूर्ण जीवन व्यतीत किया जा सकता है। यह अनुभव ब्रह्माण्ड के सूक्ष्म जगत का अनुभव लेने जैसा है।
वाराणसी के गंगा घाटों के दर्शन के लिए कुछ यात्रा सुझाव
- वाराणसी के सभी घाट एक भूतल स्तर पर स्थित नहीं हैं। सभी घाटों के भ्रमण के लिए आपको ऊँची चढ़ाई युक्त सीढ़ियाँ चढ़नी-उतरनी पड़ेगी। इसलिए सुविधाजनक जूते धारण करें। ऊपर-नीचे पैदल चलने की मानसिक तैयारी भी आवश्यक है।
- सम्पूर्ण घाट भ्रमण को आप भागों में बाँट सकते हैं। जैसे, एक भ्रमण असि घाट की ओर, दूसरा भ्रमण दशाश्वमेध घाट के आसपास तथा तीसरा उत्तरी घाटों की ओर।
- घाटों के भ्रमण के लिए प्रातःकाल एवं संध्या का समय सर्वोत्तम होता है।
- वर्षा काल में वाराणसी के घाटों का अधिकांश भाग जलमग्न हो जाता है। उस समय घाटों पर भ्रमण सुगम नहीं होता। अतः अपनी वाराणसी यात्रा नियोजित करने से पूर्व इन तथ्यों को ध्यान में रखें।
- घाटों पर भिन्न भिन्न प्रकार के श्रद्धालु विभिन्न पूजा-अनुष्ठान व साधना करते रहते हैं। हो सकता है कि आपको उनकी साधना अथवा अनुष्ठान समझने में कठिनाई हो, फिर भी उनके प्रयासों एवं भावनाओं का आदर करें।