गंगा तट पर रामनगर दुर्ग वाराणसी का एक दर्शनीय स्थल

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काशी अथवा वाराणसी, बाबा विश्वनाथ की पवित्र नगरी, भगवान शिव जिसके राजा माने जाते हैं। काशी या वाराणसी की पावन नगरी में प्रतिवर्ष करोड़ों की संख्या में पर्यटक, दर्शनार्थी, तीर्थयात्री एवं भक्तगण आते हैं। बहुधा इन सभी यात्रियों का प्रमुख ध्येय काशी विश्वनाथ मंदिर में बाबा विश्वनाथ के दर्शन, उनकी पूजा-अर्चना एवं अनुष्ठान आदि होता है। इन सब अनुष्ठानों के पश्चात यदि उनके पास कुछ समय हो तो उनके लिए मेरा एक रोचक सुझाव है। रामनगर दुर्ग एवं राजवाड़ा, जो वाराणसी में गंगा नदी के पार स्थित एक रोचक व दर्शनीय स्थल है।

गंगा के पार रामनगर

गंगा के दूसरी ओर, पूर्वी तट पर रामनगर नाम का एक छोटा सा नगर है। यह गंगा नदी के तुलसी घाट के ठीक समक्ष, नदी के उस पार स्थित है। रामनगर में इसी नाम का एक दुर्ग है जो काशी नरेश का अधिकारिक निवास स्थान है। मैंने अपने बालपन में इस दुर्ग का भ्रमण किया था। मेरी इस दुर्ग की अत्यंत मधुर स्मृतियाँ हैं। एक घाट से दूसरे घाट तक नौका की सवारी करना, मछलियों को दाना देते हुए गंगा नदी पार करना, रामनगर में एक पूर्ण दिवस आनंद से व्यतीत करना आदि।

रामनगर दुर्ग - वाराणसी
गंगा किनारे रामनगर दुर्ग

दुर्ग के भीतर स्थित संग्रहालय की मेरी जो सर्वाधित जीवंत स्मृति है, वह है रानी का एक भारी लहंगा। यह लहंगा भव्यता व अलंकरण में तो भारी था ही, शाब्दिक अर्थ में भी वह एक भारी लहंगा था। उसका भार लगभग २० किलोग्राम था। उस समय मेरी तीव्र अभिलाषा हुई थी कि किसी दिन मुझे यह लहंगा धारण करने का अवसर प्राप्त हो। अब मुझे समझ में आता है कि मेरी अभिलाषा कितनी असंभव अभिलाषा थी। इसके पश्चात भी, इस बार जब मैं इस दुर्ग के दर्शन करने यहाँ आयी, मुझमें उस लहंगे को देखने की इच्छा पुनः उत्पन्न हुई। अब मैं उसे परिपक्व मनःस्थिति एवं  प्रशिक्षित नेत्रों से देखना चाहती थी। किन्तु मुझे बड़ी निराशा हुई क्योंकि इस समय वह लहंगा सार्वजनिक प्रदर्शन के लिए उपलब्ध नहीं था।

रामनगर दुर्ग

इस दुर्ग का निर्माण महाराजा बलवंत सिंह ने सन् १७५० में मुगल शैली में करवाया था। चुनार के बलुआ पत्थर द्वारा निर्मित यह दुर्ग गंगा के बाढ़स्तर से ऊपर की धरती पर एक ऊँचे चबूतरे पर बनाया गया है। चुनार के बलुआ पत्थर वास्तव में लाल रंग के बलुआ पत्थर हैं जिन्हें सन् २०१९ से भौगोलिक संकेतक(Geographical Indicator Tag) प्राप्त है। वाराणसी के प्रसिद्ध घाटों के साथ साथ, भारत के अनेक राष्ट्रीय स्मारकों के निर्माण में इनका प्रयोग किया गया है।

रामनगर दुर्ग की बलुआ पत्थर से बनी भित्तियां
रामनगर दुर्ग की बलुआ पत्थर से बनी भित्तियां

चुनार उत्तर प्रदेश के मीरजापुर जिले में स्थित एक नगर है जो वाराणसी से लगभग ३० किलोमीटर दूर स्थित है। १८वीं सदी में निर्मित रामनगर का यह दुर्ग गंगा के दूसरे तट पर स्थित है। इसकी संरचना में प्रयुक्त जालियां एवं छज्जे मुगल काल की वास्तु शैली का प्रतिनिधित्व करते हैं।

रामनगर दुर्ग के भीतर
रामनगर दुर्ग के भीतर

दुर्ग का प्रवेश द्वार यद्यपि अतिविशाल नहीं है, तथापि दुर्ग के चारों ओर, उसकी भित्तियों से लगे लस्सी एवं गन्ने के रस के ठेलों एवं आसपास के सादगीपूर्ण परिवेश की तुलना में विशेष प्रतीत होते हैं। प्रवेश द्वार के उपरी भाग को देख ऐसा प्रतीत होता है मानो हाल ही में उस पर चटक नवीन बहुरंगी रंगरोगन किया गया है। वहीं, दुर्ग के अन्य भाग पीले रंग में रंगे हैं जिनके द्वार एवं झरोखे हरे रंग के हैं।

महल के भीतर एक प्रवेशद्वार राजसी ठाटबाट से ओतप्रोत है। उससे भव्यता झलकती है। महल के शेष भाग आरंभिक ब्रिटिश काल के बड़े बड़े सैनिक निवास प्रतीत होते हैं। महल के भीतर स्थित संग्रहालय, साथ ही बाहर स्थित उद्यान का रखरखाव अधिक उत्तम रीति से किया जा सकता है।

रामनगर दुर्ग व महल के दर्शनीय आकर्षण

सूर्यास्त बिंदु

दुर्ग का जो भाग गंगा तट की ओर है, वहाँ पर स्थित सीढ़ियों से सूर्यास्त का अप्रतिम दृश्य प्राप्त होता है। अतः आप दिवस भर के पर्यटन क्रियाकलापों को सूर्यास्त से पूर्व समाप्त कर लीजिये ताकि आप यहाँ से अप्रतिम सूर्यास्त का अविस्मरणीय आनंद ले सकें।

दुर्ग का दरबार कक्ष

एक काल में जो दुर्ग का आम सभा क्षेत्र था, दरबार कक्ष था, उसे अब एक संग्रहालय में परिवर्तित किया गया है। इस संग्रहालय का नाम सरस्वती भवन रखा गया है। दुर्ग भ्रमण के समय आप दुर्ग के इस क्षेत्र में कुछ समय अवश्य व्यतीत करें। यहाँ की धरोहर एवं दुर्लभ वस्तुओं के संग्रह के अवलोकन का आनंद उठायें। उनमें कुछ वस्तुएं अत्यंत विशेष हैं, जैसे चित्र, प्राचीन काल की कारें जिन पर बनारस राज्य की अंक पट्टिका(number plates) लगी हुई हैं, चाँदी में उत्कीर्णित कमल की आकृति की राजसी पालकी, रत्नजड़ित आसन, उस काल के राजसी परिधान, हस्तिदंत कलाकृतियाँ, आभूषण, घरेलु साज-सज्जा की वस्तुएं, वाराणसी के महीन किम्ख्वा रेशम के परिधान, राज्य के शासकों के व्यक्तिचित्र, पुरातन चित्र, हाथियों के भव्य अलंकरण, हुक्का, संगीत वाद्य, कई अभिलेख जिनमें गोस्वामी तुलसीदास द्वारा हस्तलिखित एक दुर्लभ अभिलेख भी है, अनेक दुर्लभ पुस्तकें एवं रेखांकित दृश्य।

संग्रहालय की प्रदर्शित वस्तुओं का एक बड़ा भाग सैन्य अस्त्र-शस्त्र से संबंधित है जिन्हें मैं बहुधा अपने संग्रहालय दर्शन के समय छोड़ देती हूँ। इनमें प्रमुखता से उस काल में प्रयुक्त तलवारें, भाले, बंदूकें, तोपें आदि हैं।

कुछ प्रदर्शित वस्तुओं पर काल एवं रखरखाव के अभाव का प्रभाव दिखाई देता है।

घड़ी

इस संग्रहालय का प्रमुख आकर्षण है, एक ज्योतिषीय घड़ी जिसमें हिन्दू पंचांग एवं अंग्रेजी तिथिपत्र(lunar and solar calendars) दोनों प्रदर्शित हैं। समय के अतिरिक्त उसमें सूर्य एवं चन्द्रमा की स्थितियाँ भी प्रदर्शित हैं। दोनों पंचांगों के अनुसार तिथियाँ, जन्म राशियाँ तथा नवांश भी प्रदर्शित होते हैं। इसकी स्थिति प्रतिसेकेंड बदलती है। प्रत्येक घंटे, प्रति आधे घंटे तथा प्रत्येक पंद्रह मिनट में इसमें घंटा बजता है। यह एक विशाल घड़ी है जिसे सटीक अक्षांश व देशांतर तथा समुद्र स्तर से नगर की ऊँचाई के अनुसार नियत किया गया है। एक यांत्रिक घड़ी होने के कारण, नियमित रूप से, प्रति ८ दिवसों के पश्चात इसमें कुंजी भरी जाती है।

हमने अनायास ही कल्पित कर लिया कि यह घड़ी यूरोप में कहीं निर्मित की गयी होगी। किन्तु हमें यह जानकार अत्यंत सुखद आश्चर्य हुआ कि इस घड़ी का निर्माण सन् १८७२ में वाराणसी में ही मूलचंद नाम के एक महानुभाव ने करवाया था। निर्माण के पश्चात से अब तक केवल एक अवसर पर इसे सुधारणा की आवश्यकता पड़ी थी जिसे सन् १९२३ में मुन्नीलाल नामक एक व्यक्ति ने किया था। आप सोचिये क्या वर्तमान में निर्मित कोई भी वस्तु ऐसी गारंटी देती है? मुझे अत्यंत खेद है कि मुझे उस घड़ी का छायाचित्र नहीं लेने दिया गया।

व्यास मंदिर

दुर्ग के पृष्ठभाग की भित्ति एवं गंगा नदी के मध्य दो मंदिर स्थित हैं। दोनों मंदिर महर्षी वेदव्यास जी को समर्पित हैं। व्यास मुनि की कथा कुछ इस प्रकार है। ऐसा कहा जाता है कि जब महर्षी वेदव्यासजी अपने शिष्यों सहित तीर्थयात्रा पर काशी आये थे तब कुछ दिनों तक उन्हें कहीं भी भिक्षा प्राप्त नहीं हुई थी। शिष्यों को भूख से व्यथित देख वे अत्यंत क्रोधित हो गए तथा काशी को तीन पीढ़ियों तक विद्या संपत्ति एवं मुक्ति से वंचित होने का श्राप दे दिया।

व्यास मंदिर की भित्तियां
व्यास मंदिर की भित्तियां

उसी समय एक गृहिणी ने उन्हें अपने घर में भोजन के लिए आमंत्रित किया। व्यासजी के आग्रह के अनुसार उसने उनके दस सहस्त्र शिष्यों सहित उनको भोजन कराया। वस्त्र प्रदान किये। तत्पश्चात उस गृहिणी ने उनसे एक प्रश्न पूछा, तीर्थयात्रियों का धर्म क्या है? व्यासजी ने उत्तर दिया, उनका चित्त शांत एवं हृदय निर्मल होना चाहिए। गृहिणी ने पूछा कि क्या उन्होंने इस धर्म का पालन किया है। महर्षी वेदव्यास निरुत्तर हो गए। तब गृहस्थ ने उनसे कहा कि उन्होंने तीर्थयात्रियों के धर्म का अतिक्रमण किया है। अतः काशी में उनके लिए कोई स्थान नहीं है।

अपराधबोध से ग्रस्त महर्षि को ज्ञात हो गया कि गृहस्थ एवं गृहिणी कोई अन्य नहीं अपितु स्वयं भगवान शिव व देवी पार्वती हैं। वे काशी क्षेत्र को छोड़कर गंगा के उस पार चले गए तथा वहाँ अपना आश्रम बनाया। वहाँ तपस्या व ध्यान के पश्चात उन्हें ज्ञानोदय हुआ। इसलिए यह क्षेत्र अब व्यास काशी कहलाता है। कुछ लोगों की मान्यता है कि व्यास मंदिर के दर्शनों के बिना काशी यात्रा पूर्ण नहीं होती। किन्तु व्यास मंदिर में उपस्थित कुछ गिने-चुने दर्शनार्थियों को देश इस मान्यता की सत्यता पर शंका होती है।

मंदिर में तीन लिंग हैं जो काशी विश्वनाथ, व्यास मुनि एवं उनके पुत्र का प्रतिनिधित्व करते हैं। एक मंदिर की छत पर हरे-नीले रंग के पुरातन चित्र अब भी है। यहाँ से काशी के घाटों का एवं नदी के ऊपर निर्मित सेतुओं का विहंगम किन्तु धुंधला दृश्य दिखाई देता है।

अन्य मंदिर

दुर्ग परिसर के भीतर दुर्गा, दक्षिण मुखी हनुमान एवं छिन्नमस्तिका या प्रचंड चंडिका के भी मंदिर हैं।

श्वेत अटारी

दुर्ग के भीतर श्वेत रंग की दो अटारियां हैं जहाँ तक पर्यटक जा सकते हैं। अटारियों के उस पार महाराजा एवं उनके परिवार का व्यक्तिगत निवास स्थान है। वे अब भी इस दुर्ग व महल में निवास करते हैं।

दुर्ग की वास्तुशैली एवं धरोहर

दुर्ग की मिली जुली वास्तु शैली
दुर्ग की मिली जुली वास्तु शैली

इस पुरातन कालीन महल के झरोखे, उनके तोरण, छज्जे, मंडप आदि वास्तुकला में रूचि रखने वालों एवं ऐतिहासिक धरोहरों का अध्ययन करने वालों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

रामनगर दुर्ग में आयोजित विभिन्न उत्सव

रामनगर रामलीला

रामनगर दुर्ग में वाराणसी के सुप्रसिद्ध रामलीला का प्रदर्शन किया जाता है। इस प्रदर्शन की अवधि एक मास की होती है। यह आयोजन काशी नरेश की देखरेख एवं संरक्षण में किया जाता रहा है तथा अब भी किया जाता है। मुझे बताया गया कि कोई भी इस रामलीला में भाग ले सकता है।

मेरी अभिलाषा है कि मैं भी अपने जीवनकाल में इस रामलीला प्रदर्शन को देख सकूँ। इस रामलीला में प्रयोग में लाये गए परिधान एवं अन्य सामग्रियां वाराणसी के भारत कला भवन संग्रहालय में प्रदर्शित किये जाते हैं। इस महल में भी एक रामलीला संग्रहालय है। किन्तु वह उस समय बंद था। रामलीला उत्सव, दशहरा आदि के समय दुर्ग को भव्यता से प्रकाशित किया जाता है। गंगा के इस पार से तथा नौकाओं में बैठकर प्रकाशित दुर्ग का दृश्य अत्यंत आकर्षक होता है।

दुर्ग में आयोजित अन्य उत्सव हैं, माघ मास में वेद व्यास मंदिर में आयोजित उत्सव तथा फाल्गुन मास में आयोजित राज मंगल जिसमें संगीत व नृत्य प्रदर्शनों के साथ अस्सी घाट से नौकाओं की शोभायात्रा निकाली जाती है। यह शोभा यात्रा दुर्ग के सामने से होकर जाती है।

रामनगर के अन्य आकर्षण

रामनगर भारत के पूर्व प्रधान मंत्री तथा सबके प्रिय श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का गृहनगर है।

दुर्ग तक कैसे पहुंचें?

वाराणसी के दशाश्वमेध घाट से नौका द्वारा नदी पार कर दुर्ग तक पहुँचने में हमें लगभग एक घंटे का समय लगा। यह वाराणसी से लगभग १४ किलोमीटर दूर स्थित है। वहाँ तक पहुँचने के अन्य साधन भी हैं। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय के समीप स्थित पीपों के सेतु द्वारा पैदल चलकर भी दुर्ग तक पहुँच सकते हैं। इसमें आपको २ किलोमीटर पैदल चलना पड़ेगा, वह भी जब मानसून ना हो तथा नदी का जल स्तर अधिक ना हो। सड़क मार्ग से भी आप दुर्ग तक जा सकते हैं जिसके लिए आपको लगभग ४५ मिनट का समय लगेगा।

पर्यटन समयावधि एवं प्रवेश शुल्क

रामनगर प्रासाद
रामनगर प्रासाद

यह दुर्ग पर्यटकों के लिए प्रातः १० बजे से संध्या ५ बजे तक सम्पूर्ण सप्ताह खुला रहता है। दुर्ग में प्रवेश निशुल्क है। संग्रहालय में नाममात्र का प्रवेश शुल्क है। किन्तु नौका द्वारा पहुँचने के लिए नौका शुल्क अवश्य अधिक है। होली के दिन यह दुर्ग पर्यटकों के लिए बंद रहता है।

रामनगर दुर्ग क्यों प्रसिद्ध है?

  • रामनगर दुर्ग में एक मास के लिए रामलीला का प्रदर्शन किया जाता है जिसका समापन दशहरा उत्सव के साथ होता है।
  • यह एक ऐसा धरोहर दुर्ग तथा महल है जिसमें महाराजा एवं उनका परिवार अनवरत निवास करते आ रहे हैं।
  • दुर्ग तक पहुँचने के लिए गंगा नदी में नौका विहार स्वयं अपने आप में एक अनोखा अनुभव है।
  • वाराणसी का विहंगम दृश्य
  • गंगा नदी पर सूर्यास्त का अप्रतिम दृश्य
  • संग्रहालय में प्रदर्शित विभिन्न प्रकार के धरोहर संग्रह
  • रामनगर भारत के पूर्व प्रधान मंत्री तथा सबके प्रिय श्री लाल बहादुर शास्त्री जी का गृहनगर है। आप उनके पुश्तैनी घर के दर्शन भी कर सकते हैं।

दुर्ग भ्रमण कब करें?

दुर्ग भ्रमण के लिए शीत ऋतुकाल सर्वोत्तम है। किन्तु इस समय यहाँ पर्यटकों की भारी भीड़ होती है, विशेषतः दशहरा उत्सव के समय। ग्रीष्म काल भी दुर्ग दर्शन के लिए उत्तम है। उस समय गर्मी से बचाव के उपाय अवश्य करें। संभव हो तो मानसून या वर्षा ऋतु में यहाँ ना आयें।

अनुवाद: मधुमिता ताम्हणे

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